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श्रेणिक को भावी तीर्थकर होने की सूचना ५३ राजा ने कालशौरिक को बुलाया; पर उसने भी कसाई का काम छोड़ना अस्वीकार कर दिया । राजा ने उसे अंधकूप में डलवा दिया; पर वहाँ भी मिट्टी के ५०० भैसे बनाकर उसने हिंसा की। ___इसी काल में इन्द्र ने एक दिन अपनी सभा में कहा- "इस समय श्रेणिक से श्रद्धालु श्रावक कोई नहीं है। एक देव उसकी परीक्षा लेने आया और श्रेणिक की निष्ठा से प्रसन्न होकर उसने १८ लड़ी का हार आदि श्रेणिक राजा को अर्पित किये। वैशाली पर कृणिक के आक्रमण के कारणों में ये देवता प्रदत्त वस्तुएँ ही थीं। हमने राजाओं के प्रकरण में इनका वर्णन किया है।
श्रेणिक राजा ने इसी बीच राजपरिवार में तथा मंत्रियों और सामन्तों के बीच घोषणा की-"जो कोई भगवान् के पास प्रव्रज्या लेगा, उसे मैं रोऊँगा नहीं।
श्रेणिक के पुत्रों की दीक्षा श्रेणिक की इस घोषणा का यह प्रभाव पड़ा कि, कितने ही नागरिकों के साथ-साथ जालि, मयालि, उववालि, पुरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदन्त, लदन्त, वेहल्ल, वेहास, अभय, दीर्घसेन, महासेन, लष्ठदंत, गूढ़दन्त, शुद्ध दन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन, घृणसेन श्रेणिक के २३ पुत्रों ने तथा नंदा, नंदमति, नंदोत्तरा, नंदसेणिया,
१-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक १५८-१६५ पत्र २२४.१
२-चउपन्नमहापुरिसचरियं, पृष्ठ ३१७-३२०
आवश्यकचूर्णि, उत्तराद्ध, पत्र १७०, योगशास्त्र सटीक, प्रकाश २, श्लोक १०१ पत्र ९४-१
३-गुणचन्द्र-रचित 'महावीर चरियं', पत्र ३३४.१ ४-अणुत्तरोववाइय ( मोदी-सम्पादित ), पष्ठ ६६ ५-अरगुत्तरोववाश्य ( मोदी-सम्पादित ), पष्ठ ६६
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