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तीर्थङ्कर महावीर
" अभयकुमार को कहा- -'जीयो या मरो' इसका अर्थ था कि जीतेजी अभयकुमार धर्म कर रहा है, मर कर वह अणुत्तरविमान में जायेगा | "काल - शौरिक को कहा - 'जीओ नहीं; पर मरो भी नहीं, इसका अर्थ था कि, वह अभी तो पाप कर्म कर ही रहा है, मर कर वह ७ - वें नरक में जायेगा ।”
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चिन्ता हुई
श्रेणिक को अपने नरक में जाने की सूचना से बड़ी उसने भगवान् से कहा- "आप - सरीखा मेरा स्वामी और मैं नरक में जाऊँगा ?" भगवान् ने उत्तर दिया - " जो कर्म व्यक्ति बाँधता है, उसे भोगना अवश्य पड़ता है । पर इस पर चिन्ता करने की कोई बात नहीं है । भावी चौत्रीशी में तुम महापद्म-नामके प्रथम तीर्थंकर होगे ।'
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श्रेणिक ने भगवान् से पूछा - "नरक जाने से बचने का कोई उपाय है ?" तो, भगवान् बोले - "हे राजन् कपिला - ब्राह्मणी के हाथ हर्ष पूर्वक साधुओं को भिक्षा दिलवाओ और कालशौरिक से कसाई का काम छुड़वा दो तो नरक से तुम्हारी मुक्ति हो सकती है ।
श्रेणिक ने लौट कर कपिला ब्राह्मणी को बुलाया और दान देने के लिए धन देने को कहा । पर, कपिला ने धन मिलने पर भी भिक्षा देना स्वीकार नहीं किया ।
१ – श्रेणिक के उस भव का विस्तृत विवरण ठाणांगसूत्र सटीक, उत्तरार्द्ध, ठाणा ६, ३०३ सूत्र ६६३ पत्र ४५८-२ से ४६८-२ तक मिलता है ।
ठाणांग के उसी सूत्र में उसके दो अन्य नाम भी दिये हैं- (१) देवसेन और (२) विमल वाहन, प्रवचनसारोद्धार सटीक, द्वार ७, गाथा २६३ पत्र ८० - १ तथा त्रिपष्टिशला कापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक १४२ पत्र १२३ - २ में उसका नाम पद्मनाभ दिया है ।
२ - आवश्यक चूर्णि उत्तराद्ध पत्र १६६ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक ४४४-१४५ पत्र १२३ - २ तथा योगशास्त्र सटीक, प्रकाश २, पत्र ६१-१-६४-२ में भी इसका उल्लेख है ।
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