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१६-वाँ वर्षावास श्रेणिक को भावी तीर्थङ्कर
होने की सूचना
वर्षावास के बाद भी भगवान् धर्म प्रचार के लिए राजगृह में ही ठहरे । एक दिन श्रेणिक भगवान् के पास बैठा था। उसके निकट ही एक कुष्ठी बैठा था। इतने में भगवान् को छींक आ गयी । वह कोढ़ी बोला--"तुम मृत्यु को प्राप्त होगे।” फिर श्रेणिक को छींक आयी, तो कोढ़ी बोला"बहुत दिन जीओगे।" थोड़ी देर बाद अभयकुमार को छींक आयी तो कोढ़ी ने कहा-"जीओ या मरो।" इतने में कालशौरिक छीका । तब कुष्ठी ने कहा-"जीओगे नहीं, पर मरोगे भी नहीं।"
उस कोढ़ी ने भगवान् के लिए मरने की बात कह दी थी, इस पर श्रेणिक को बड़ा क्रोध आया। उसने अपने सुभटों को आज्ञा दी कि कोढ़ी जब उठकर चले तो पकड़ लें । देशना समाप्त हो जाने पर राजा के कर्मचारियों ने उसे घेर लिया; पर क्षण भर में वह आकाश में उड़ गया।
विस्मित होकर श्रेणिक ने भगवान् से पूछा-"यह कुष्ठी कौन था ?" भगवान् ने उस कुष्ठी का परिचय बताया और उसकी छींक-सम्बन्धी टिप्पणियों का विवेचन करते हुए कहा--"उसने मुझसे कहा कि अब तक संसार में रहकर क्या कर रहे हो । शीघ्र मोक्ष जाओ।
"तुम्हें कहा-'जीओ', इसका अर्थ है कि तुम्हें जीते जी ही सुख है। मरने के बाद तो तुम्हें नरक जाना है।
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