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अर्जुन माली की दीक्षा का विचार भगवान् की वन्दना करने के लिए जाने को हुआ। घर वालों ने मुद्गरपाणि यक्ष के भय के मारे उसे मना किया पर वह अपने विचार पर अडिग रहा।
स्नानादि से निवृत्त होकर वह भगवान् का दर्शन करने जा रहा था कि, उसे मुद्गरपाणि यक्ष के प्रभाव से युक्त अर्जुन माली दिखायी पड़ा। अर्जुन मुद्गर लेकर उसे मारने चला; पर उसके आघात का श्रमणोपासक अजुन पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा।
इस घटना के बाद मुद्रपाणि अर्जुन माली को छोड़कर चला गया। मुद्गरपाणि का अर्जुन के शरीर से निकलना था कि, अर्जुन माली भूमि पर गिर पड़ा।
होश में आने पर अर्जुन ने सुदर्शन से पूछा- "आप कौन हैं ?" सुदर्शन ने उसे अपना परिचय देते हुए कहा- "मैं भगवान् का दर्शन करने जा रहा हूँ।”
अर्जुन भी भगवान् को वन्दना करने चल पड़ा और गुणशिलकचैत्य में पहुँचकर उसने भगवान् को परिक्रमा करके उनका वन्दन किया।
भगवान् की धर्मदर्शना से प्रभावित होकर अर्जुन ने दीक्षा ले ली। सामायिक आदि ११ अंगों का अध्ययन किया । वह साधु-धर्म पालना तथा तप करता रहा। उसने केवल-ज्ञान प्राप्त किया और अन्त में पादपोपगमन करके मोक्ष को प्राप्त किया ।'
काश्यप की दीक्षा उसी राजगृह नगर में काश्यप-नामक गृहपति रहता था। उसने भी मंकाती की तरह साधु-व्रत ग्रहण किया और सामायिक आदि तथा ११ अंगों का अध्ययन करके विभिन्न तप करता रहा । केवल-ज्ञान प्राप्त किया
१-वही, सूत्र ६६-१२१, पृष्ठ २६-३३
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