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________________ ४८ तीर्थङ्कर महावीर किंक्रम की दीक्षा किंक्रम भी राजगृह का निवासी था । इसने भी अपने पुत्र को गृहस्थी सौंपकर भगवान् के निकट जाकर साधु-धर्म स्वीकार किया। सामायिक आदि और ११ अंगों का अध्ययन करके विभिन्न तप किये। केवल ज्ञान प्राप्त किया और विपुल पर्वत पर पादपोपगमन करके सिद्ध हुआ ।' अर्जुन माली की दीक्षा उसी नगर में अर्जुन-नामक एक मालाकार रहता था। उसकी पत्नी का नाम बन्धुमती था। नगर के बाहर अर्जुन की एक पुष्प-वाटिका थी। उस वाटिका में मुद्गरपाणि ( मुद्गर हाथ में है जिसके, वह यक्ष ) नामक यक्ष का यक्षायतन था । अर्जुन वहाँ नित्य फूल चढ़ाता और मुद्गरपाणि की वंदना करता। एक दिन अर्जुन अपनी पत्नी के साथ फूल तोड़ने पुष्प वाटिका में गया । उस दिन ६ व्यक्ति पहले से ही मंदिर में छिप गये थे। जब अर्जुन फूल लेकर अपनी पत्नी के साथ लौटा तो उन लोगों ने अर्जुन को पकड़ लिया और उसकी पत्नी के साथ भोग भोगा । अर्जुन को बड़ा दुःख हुआ कि इतने समय से मुद्गरपाणि की पूजा करने के बावजूद में असमर्थ हूँ। मुद्गरपाणि अर्जुन के शरीर में प्रवेश कर गया और यक्ष के बल से अर्जुन ने उन ६ को मार डाला । फिर वह नित्य ६ पुरुषों और १ नारी की हत्या करता । उसके उपद्रव से सभी तंग आ गये । अर्जुन माली के इस कृत्य से नगर में आतंक छा गया । पर, उसका कोई उपचार न था । उस समय राजगृह में सुदर्शन-नामक श्रेष्ठी रहता था। यह सुदर्शन श्रमणोपासक था । भगवान् के आगमन का समाचार सुनकर सुदर्शन १-वही, अध्ययन ६, सूत्र ६७ पृष्ठ ३६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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