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भगवान् राजगृह में
अन्तकृत् सर्वदुखानाम् '
समवायांगसूत्र सटीक समवाय १४३ में 'अंतगड " शब्द पर बड़े विपद् रूप में प्रकाश डाला गया है और तद्रूप ही उसकी टीका ठाणांगसूत्र सटीक में की गयी है ।
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अंतो- - विनाशः स च कर्मणस्तत्फल भूतस्य वा संसारस्य कृतो यैस्तेऽन्तकृतः ते च तीर्थकरादयास्तेषां दशाः श्रन्तकृदृशाः । --अर्थात् जो कर्म और उसके फलभूत संसार का विनाश करता है, वह अंतकृत तीर्थंकरादि हैं। और उनकी दशा अंतकृदृशा है । * मंकाती की दीक्षा
यह मंकाती गृहपति था । गंगादत्त के समान इसने अपने सबसे बड़े पुत्र को गृहभार सौंप दिया और स्वयं भगवान् के निकट जाकर साधु हो गया । उसने अन्य साधुओं के साथ सामायिक आदि ११ अंगों का अध्ययन किया । गुणरत्न-संवत्सर- तपकर्म किया । इसे केवल -ज्ञान प्राप्त हुआ । १६ वर्ष पर्याय पालकर विपुल पर्वत पर पादपोपगमन करके सिद्ध हुआ
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१ - कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सहित, व्याख्यान ६, सूत्र १२४ पत्र ३४४ २ - समवायांगसूत्र सटीक, समवाय १४३, पत्र १११ ११२
३ - ठाणांगसूत्र सटीक, ठाणा १०, उद्देशः ३, सूत्र ७५५ पत्र ५०५-२ तथा ५०७-१
४ -- ठाणांगसूत्र टीका के अनुवाद सहित, विभाग, ४, पत्र १७६-१
५- एल० डी० बानेंट ने अन्तगड अगुत्तरोववाइय के अंग्रेजी अनुवाद में 'गाहा'ई' का अर्थ 'जेंटलमैन' लिखा है । मैंने आनन्द श्रावक के प्रसंग में इस शब्द पर विस्तृत रूप में विचार किया है ।
६ - देखिये समवायांग सटीक, समवाय १४३ पत्र ११२-१, तथा नंदीसूत्र सटीक सूत्र ५३ पत्र २३२-२
७- अंतगड- अरगुत्तरोववाइयदसाओ ( एन०पी० वैद्य सम्पादित )
अंतगड, अध्याय ६, सूत्र ६४-६६ पृष्ठ २६
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