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पुद्गल को प्रवज्या
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उद्यान था । आलभिया के राजा का भी नाम जितशत्रु था। शंखवन में भगवान् के आने का समाचार सुनकर जितशत्रु भगवान् की वन्दना करने गया ।' ... आलभिया के शंखवन के निकट ही पुद्गल-नामक परिव्राजक रहता था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि ब्राह्मण-ग्रन्थों में पारंगत था। निरन्तर ६ टंक का उपवास करने से तथा हाथ ऊँचा करके आतापना लेते रहने रहने से शिव राजर्पि के समान उसे विभंग ज्ञान (विपरीत ज्ञाना) उत्पन्न हो गया। ____उस विभंग ज्ञान के कारण वह ब्रह्मलोक कल्प में स्थित देवों की स्थिति जानने और देखने लगा । अपनी ऐसी स्थिति देखकर उसे यह विचार उत्पन्न हुआ--"मुझे अतिशय वाले ज्ञान और दर्शन उत्पन्न हो गये हैं । देवों की जवन्य स्थिति १० हजार वर्षों की है और पीछे एक समय अधिक दो समय अधिक यावत् असंख्य समय अधिक करते उनकी १० सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति होती है। उसके आगे न देवता हैं और न देवलोक ।'
ऐसा विचार कर आतापना-भूमि से नीचे उतर त्रिदंड, कुंडिका • तथा भगवा वस्त्र ग्रहण करके वह आलमिया नगरी में तापसों के आश्रम में गया ।
और, वूम-घूमकर सर्वत्र कहने लगा- "हे देवानुप्रियों! मुझे अति. शय वाले ज्ञान और दर्शन उत्पन्न हुए हैं।" ऐसा कहकर वह अपने मत का प्रचार करने लगा।
___१-उवासगदसाओ [ पी० एल० बैद्य-सम्पादित ] पृष्ठ ४१ । इसका वर्णन हमने राजाओं के प्रकरण में किया है। . . २-तापसों का विस्तृत वर्णन हमने 'तीर्थंकर महावीर', भाग १, पष्ठ ३३६-३४४ में किया हैं। ..
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