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१८ - वाँ वर्षावास
भगवान् वाराणसी में
वाणिज्यग्राम में वर्षावास पूरा करके भगवान् महावीर ने वाराणसी की ओर प्रस्थान किया । वाराणसी में कोष्ठक चैत्य था । भगवान् उसी चैत्य ठहरे | भगवान् के आने का समाचार सुनकर वाराणसी का राजा जितशत्रु उनकी वन्दना करने गया । हमने राजाओं वाले प्रकरण में इसका उल्लेख किया है ।
चुल्लिनी- पिता और सुरादेव का श्रावक होना
भगवान् के उपदेश से प्रभावित होकर चुल्लिनी-पिता और उसकी पत्नी श्यामा तथा सुरादेव और उसकी पत्नी धन्या ने श्रावक व्रत ग्रहण किये । ये दोनों ही भगवान् के मुख्य श्रावकों में थे प्रकरण में हमने में हमने उनके सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डाला हैं ।
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मुख्य श्रावकों के
पुद्गल की प्रव्रज्या
वाराणसी से भगवान् आलभिया गये । आलभिया में शंखवन- नामक
१—उवासगदसाओ ( पी० एल० वैद्य - सम्पादित ) पृष्ठ ३२
२ - वही,
पृष्ठ ३२-३७
३ - वही, पृष्ठ ३८-४०
3- आलभिया की स्थिति के सम्बन्ध में हमने 'तीर्थकर महावीर, भाग १, पृष्ठ २०७ पर विचार किया है।
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