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१७-वाँ वर्षावास भगवान चम्पा में
वर्षावास समाप्त होने के बाद भगवान् ने चम्पा की ओर विहार किया । चम्पा में पूर्णभद्र-नामक यक्षायतन था। भगवान् उस यक्षायतन के उद्यान में टहरे ।
उस समय चम्पा में दत्त-नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम रक्तवती था । दत्त-रक्तवती को महांचन्द्र-नामक पुत्र था। वहीं युवराज था। महाचन्द्र को ५०० पत्नियाँ थी, उनमें श्रीकान्ता प्रमुख थी।
भगवान् के आगमन का समाचार सुनकर राजा दत्त सपरिवार भगवान् की वन्दना करने गया । भगवान् ने धर्मदेशना दी। धर्मदेशना से महाचन्द्र बड़ा प्रभावित हुआ और उसने श्रावकों के व्रतों को स्वीकार किया।
महाचन्द्र बड़ी निष्ठा से श्रावक-व्रतों का पालन करता। एक बार पौषधशाला में धर्मजागरण करते हुए महाचन्द्र को विचार हुआ कि यदि भगवान् चम्पा पधारें तो मैं प्रवजित हो जाऊँ ।
महाचन्द्र की दीक्षा महाचन्द्र का विचार जानकर भगवान् महावीर पुनः चम्पा आये। महाचन्द्र अपने माता-पिता के समझाने पर भी दृढ़ रहा और भगवान् के निकट जाकर उसने प्रव्रज्या ले ली।
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