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तीर्थङ्कर महावीर
. उसके बाद भद्रा भी भगवान् के पास आयी और उसने अपने पुत्र को भिक्षा लेने घर न आने का कारण पूछा। भगवान् ने उसे सारी बात बता दी ।
भद्रा, श्रेणिक राजा के साथ, अपने पुत्र को देखने, वैभारगिरि पर गयी। अपने पुत्र की दशा देखकर वह दहाड़ मार-मार कर रोने लगी । श्रेणिक ने भद्रा को समझाया । श्रेणिकके समझाने पर भद्रा को प्रतिबोध हुआ और भद्रा तथा श्रेणिक दोनों अपने-अपने घर लौट आये ।
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धन्य और शालिभद्र दोनों मुनि काल को प्राप्त करके सर्वार्थसिद्धनामक विमान में प्रमोद-रूपी सागर में निमग्न हुए और ३३ सागरोपम के आयुष्य वाले देवता हुए । '
अपना वह वर्षावास भगवान् ने राजगृह में बिताया ।
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१ - त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग १०, श्लोक १४६ - १८१ पत्र १३५-१ से १३६-१
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