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धन्य की दीक्षा
३६ और, भगवान् के राजगृह आने पर धन्य ने भी शालिभद्र के साथ दीक्षा ले ली।
धन्य-शालिभद्र का साधु-जीवन धन्य और शालिभद्र दोनों ही बहुश्रुत हुए और महातप करने लगे। शरीर को किञ्चित् मात्र चिन्ता किये बिना वे पक्ष, मास, द्विमासिक, त्रैमासिक तपस्या करके पारणा करते ।
__ भगवान् महावीर के साथ विहार करते हुए वे एक बार फिर राजगृह आये। उस समय उन दोनों ने एक मास का उपवास कर रखा था। भिक्षा लेने जाने के लिए अनुमति लेने के विचार से वे भगवान् के निकट गये । भगवान् ने कहा-"आज अपनी माता से आहार लेकर पारणा करो।"
शालिभद्र मुनि धन्य के साथ नगर में गये। दोनों भद्रा के द्वार पर जाकर खड़े हो गये। उपवास के कारण वे इतने कृषकाय हो गये थे कि पहचाने भी नहीं जा सकते थे।
भगवान् के दर्शन करने के विचार में भद्रा व्यस्त थी। उसका ध्यान मुनियों की ओर नहीं गया।
उसी समय शालिभद्र को पूर्वभव को माता धन्या नगर में दही और घी बेचती निकली । शालिभद्र को देखकर उसके स्तन से दूध निकलने लगा। उसने मुनियों को वन्दना की और उन्हें भिक्षा में दही दिया ।
वहाँ से लौट कर शालिभद्र भगवान् के पास आये और उन्होंने पूछा-"आप की आज्ञानुसार मैं माता के पास गया। पर, गोचरी क्यों नहीं मिली ?' तब भगवान् ने बताया कि दही देनेवाली वह नारी तुम्हारे पूर्वभव की माता थी।
१-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग १०, श्लोक १३६-१४८ पत्र १३४-२--१३५-१
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