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शालिभद्रकी दीक्षा "उसका भी कोई अधिपति है", यह जानकर शालिभद्र बड़ा दुःखी हुआ और उसने महावीर स्वामी से व्रत लेने का निश्चय कर लिया।
पर, माता के अनुरोध पर वह श्रेणिक के निकट आया और उसने विनयपूर्वक राजा को प्रणाम किया । राजा ने उससे पुत्रवत् स्नेह दर्शाया और उसे गोद में बैठा लिया।
भद्रा बोली- "हे देव ! आप इसे छोड़ दें। यह मनुष्य है; पर मनुष्य की गन्ध से इसे कष्ट होता है। उसका पिता देवता हो गया है और वह अपने पुत्र और पुत्रवधुओं को दिव्य वेश अंगराग आदि प्रतिदिन देता है।"
यह सुन कर राजा ने शालिभद्र को विदा किया और वह सातवीं मंजिल पर चला गया। ___शालिभद्र को ग्लानी थी ही, उसी बीच धर्मघोष-नाम के मुनि के उद्यान में आने की सूचना मिली। शालिभद्र उनकी वन्दना करने गया । वहाँ उसने साधु होने का निश्चय कर लिया और अपनी माता से अनुमति लेने घर आया ।
माता ने उसे सलाह दी कि, यदि साधु होना हो तो धीरे-धीरे त्याग करना प्रारम्भ करो।
अतः, वह नित्य एक पत्नी और एक शैया का त्याग करने लगा।
जब इस बार भगवान् महावीर राजगृह आये तो शालिभद्र ने दीक्षा ले ली।'
१-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग १० श्लोक ५७-१८१ पत्र १३२-५-१३६-१; भरतेश्वर-बाहुबलि-वृत्ति, भाग १, पत्र १०६-१११; उपदेशमाला सटीक, तृतीय विश्राम, पत्र २५५-२६१ __इनके अतिरिक्त ठाणांगसूत्र सटीक, उत्तराद्ध पत्र ५१०-१-५१०-२ में भी शालिभद्र की कथा आती है । शालिभद्रके सम्बन्ध में दो चरित्र-ग्रन्थ भी हैं—(१) पूर्णभद्र-रचित 'धन्य-शालिभद्र-महाकाव्य' और ( २ ) शानसागर गणि-रचित गयबद्ध धन्य-चरित्र
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