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८. कुशार्त (1)
शौरिक (सौरिपुर)
१ - " सेक्रेड बुक्स आव द' ईस्ट" खण्ड २२, (पृष्ठ २७६) में डाक्टर याकोबी ने लिखा है कि, प्राकृत का 'सोरिअपुर' संस्कृत का 'शौरिकपुर ' है । निश्चित रूप में यह कृष्ण का नगर है । उसी ग्रंथमाला के खण्ड ४५ (पृष्ठ ११२ में उन्होंने लिखा है कि, ब्राह्मण-ग्रंथों के अनुसार वसुदेव मथुरा में रहते थे । जैनों ने इस नगर का जो नाम दिया है, वह 'शौरी' शब्द से बना है— जो 'कृष्ण' का समानार्थी है । कृष्ण के दादा का नाम 'सूर' था । अतः 'सौरिपुर' को 'शौरिकपुर ' अथवा 'शौर्यपुर' होना चाहिए था । बाद के टीकाकारों ने जिस रूप में शब्द निर्माण किया; वह अशुद्ध है ।
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याकोबी महोदय ने 'सोरिअपुर' - सम्बन्धी इस टिप्पणी में दो भूलें की हैं । एक तो यह कि, मथुरा और सोरिअपुर को एक नगर मान लिया है, जब कि वे दो नगर थे, एक नहीं । 'मथुरा' के लिए जैन - साहित्य में 'महुरा' शब्द आया है (वसुदेव- हिण्डी, पृष्ठ ३६९ ) । यह मथुरा शूरसेन देश में थी और 'सौरिपुर' कुशार्त - देश में, जो एक पथक् राज्य था और जिसका वर्णन २५ || आर्य देशों में है ।
दूसरी बात यह है कि, 'शौरि' शब्द 'कृष्ण' का समानार्थक मानकर, याकोबी ने 'सोरिअपुर' का सम्बन्ध कृष्ण से जोड़ दिया । पर वस्तुतः बात यह थी कि, 'सोरिअपुर' नगर कृष्ण के पितामह सोरी ने बसाया था ( वासुदेव - हिण्डी पृष्ठ १११, ३५७ ) । वह कृष्ण से तीन पीढ़ी पहले से ही इसी नाम से बसा हुआ था । और, रही मथुरा- वह तो सोरिअपुर के बसने से भी बहुत पूर्व से बसी हुई थी । कृष्ण के पितामह शूर से भी सैकड़ों वर्ष पूर्व से शूरसेन जनपद था ( मथुरा - परिचय, कृष्णदत्त वाजपेयी - लिखित पृष्ठ १४ ) और उस जनपद की राजधानी मथुरा थी । अतः कहना चाहिए कि, मथुरा और सोरिअर को एक करने का प्रयास डाक्टर याकोबी की भ्रांति थी । 'अभिधान-चिंतामणि- कोश' (पृष्ठ २२३ ) में मथुरा के तीन नाम आये हैं - मथुरा, मधुरापघ्नं और मधुरा ।
डा० याकोबी के मत का ही समर्थन जार्ल कार्पेटियर ने उत्तराध्ययन सूत्र (पृष्ठ ३५८ ) में किया है। उन्होंने भी तथ्य की खोज-बीन करने का प्रयास नहीं किया ।
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