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(३६) श्रावस्ती', गजपुर, (हस्तिनापुर), मिथिला, काम्पिल्य', पोतनपुर, चम्पा", काकन्दी, शुक्तिमती', कोशलपुर, रत्नपुर , आदि नगरों में विहार करते हुए वाराणसी, गये। वाराणसी से आप आमलकप्पा''
और सम्मेतशिखर'' गये। यहीं पर आपका निर्माण हुआ। (१) जैन-ग्रन्थों में इसे कुणाल की राजधानी बताया गया है। (२) जैन-ग्रन्थों में इसे कुरु की राजधानी बताया गया हैं । यह स्थान मेरठ
जिले में है। (३) जन ग्रन्थों में इसे विदेह की राजधानी बताया गया है । (४) यह पांचाल की राजधानी थी। फरुखाबाद जिले में कायमगज से
पाँच कोस की दूरी पर स्थित है। (५) यह अंग देश की राजधानी थी। भागलपुर जिले में आज भी इसी
नाम से विख्यात है। (६) यह चेदि की राजधानी थी। (७) यह कौशल की राजधानी थी । वर्तमान अयोध्या । (८) यह रत्नपुर (नौराई) अयोध्या से १४ मील की दूरी पर हैं । (६) पासनाह-चरिअं, पत्र ४८१ (१०) बौद्ध-ग्रन्थों में इसे बुलिय जाति की राजधानी बताया गया है। यह
१० योजन विस्तृत था। इसका संबंध वेठद्वीप के राजवंश से बताया गया है। श्री बील का कथन है कि वेठद्वीप का द्रोण ब्राह्मएए शाहाबाद जिले में मसार से वैशाली जानेवाले मार्ग में रहता था। अतः अल्लकप्प वेठद्वीप से बहुत दूर न रहा होगा (संयुक्त-निकाय, बुद्धकालीन भारत का भौगोलिक परिचय, पृष्ठ ७)। यह अल्लकप्प ही जैन-साहित्य में वर्णित आमलकप्पा है। यहाँ नगर से बाहर
अंबसाल चैत्य में महावीर का समवसरण हुआ था। यहाँ महावीर ने . सूर्याभ के पूर्वभव का निरूपए किया था। (११) पार्श्वनाथ पर्वत ।
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