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________________ (४०) भगवान् पार्श्वनाथ के आठ गएधर' थे। (१) शुभ (शुभदत्त) (२) आर्यघोष (३) वसिष्ठ (४) ब्रह्मचारी (५) सोम (६) श्रीधर (७) वीरभद्र (८) यशस्वी। उनके १६०० साधु थे, उनमें प्रमुख आर्यदत्त थे। ३८००० साध्वियाँ थी, उनमें प्रमुख पुष्पचूला थीं। १६४००० व्रतधारी श्रावक थे-उनमें प्रमुख सुव्रत थे। ३२७००० श्राविकाएं थीं-उनमें प्रमुख सुनन्दा थीं। इनके अतिरिक्त उनके और भी परिवार थे। (१) (अ) तस्याष्टौ 'गणाः' समानवाचनक्रियाः [ साधु ] समुदायाः, अभी 'गणधराः' तन्नायकाः सूरयः । इदं च प्रमाणं स्थानाङगे (सूत्र ६१७) पर्युषणाकल्पे (सूत्र १५६) च श्रूयते। दृश्यते च किल आवश्यके अन्यथा, तत्र चोक्तम्- "दसनवगं, गणाण मारणं जिरिंगदारणं ।" (नियु० गा० २६८) ति, कोऽर्थ ? पार्श्वस्य दश गणा गणधराश्च, तदिह द्वयोरल्पायुषत्वादिकारणेनाविवक्षाऽनुमातव्येति । -पवित्र कल्पसूत्र, पृथ्वीचन्द्र सूरि-प्रणीत कल्पसूत्र-टिप्पनकम् , पृष्ठ १७ (आ) श्रीपार्श्वस्य अष्टौ, आवश्यके (आवश्यक नियुक्ति गाथा २६०) तु दश गणाः, दश गणधराश्चोक्ताः। इह स्थानाङगे च द्वौ अल्पायुष्कत्वादि कारणान्नौक्तौ इति टिप्पनके व्याख्यातं :-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पत्र ३८१ आवश्यक नियुक्ति में गणधरों की संख्या १० बतलायी गयी है, पर उनमें दो अल्पायु होने के कारण यहाँ नहीं गिनाये गये हैं। ऐसा ही उल्लेख आवश्यक नियुक्ति की मलयागिरि की टीका (पत्र २०६), एक विंशति । स्थान प्रकरणम् (पत्र ३०), प्रवचनसारोद्धार पूर्वभाग (पत्र ८६) में भी आया है। (२) स्थानाङ्ग ८ में पार्श्वनाथ के गणधरों के नाम हैं। वहाँ प्रथम गणधर का नाम शुभ है। पासनाह-चरियं में उनका नाम शुभदत्त है। ( पत्र २०२ ) समवाय में आया 'दिन्न' शब्द भी वस्तुतः यही द्योतित करता है। कल्पसूत्र में यही नाम शुभ तथा आर्यदत्त दोनों रूपों में आया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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