SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३७) एक दिन पाक्कुमार उद्यान में गये, तो वहाँ उनकी दृष्टी वन-भवन की दीवाल पर अंकित नेमिनाथ के एक चित्र पर गयी। नेमिनाथ के गृहत्याग से प्रेरित होकर, पार्श्वकुमार ने गृहत्याग का निश्चय किया। उस दिन रात्रि में जब वे लेटे, तो उन्होंने जगत में ज्ञान-प्रसार का संकल्प किया और दूसरे दिन प्रातःकाल उठने पर, माता-पिता की अनुमति प्राप्त कर लेने के बाद, वार्षिक दान करना प्रारम्भ कर किया। इसके बाद, महोत्सव पूर्वक अशोक वृक्ष के नीचे जाकर लुंचन किया। इस प्रकार ३० वर्ष की उम्र में ३०० मनुष्यों के साथ, पौष वदि ११ के दिन पार्श्वकुमार ने दीक्षा अंगीकार की। __वहाँ से विहार करते हुए पार्श्वकुमार कलिगिरि नामक पर्वत के नीचे स्थित कादम्बरी नामक वन में गये और एक सरोवर के तट पर तपस्या में लीन हो गये। इसी अवसर पर महीधर नामक एक हाथी वहाँ आया और अपने पूर्वभव का स्मरण करके, उसने एक कमल तोड़कर भगवान् के चरणों पर अर्पित किया। लोगों ने यह बात चम्पा के राजा करकण्डु से कही। समाचार सुनकर राजा भगवान् के प्रति आदर प्रकट करने के लिए वहाँ गये। देवताओं ने उस स्थल पर भगवान् की एक मूर्ति स्थापित की और राजा ने उस पर एक विशाल चैत्य का निर्माण कराया । वह सरोवर उस दिन से बहुत बड़ा तीर्थ हो गया और कलि-गिरि-कुंड सरोवर के निकट होने के कारण उसका नाम 'कलिकुंड' पड़ गया।' ____ भगवान् पार्श्वनाथ वहाँ से शिवपुरी गये और कौशाम्ब नामक वन में कायोत्सर्ग की मुद्रा में ध्यान में स्थिर हो गये। धरणेन्द्र अपने पूर्वभव का स्मरण करके भगवान् के प्रति आदर प्रकट करने के लिए वहाँ उपस्थित हुआ। तीन दिनों तक धूप से रक्षा करने के लिए, वह भगवान् पर छत्र लगाये रहा। उस समय से उस स्थान का नाम 'अहिच्छत्रा'२ पड़ गया। ___वहाँ से भगवान् राजपुर गये । यहाँ ईश्वर नामक राजा उनके प्रति आदर प्रकट करने के लिए आया। भगवान् को देखते ही राजाको अपने पूर्वभव का स्मरण हो गया। (१) देवभद्रसूरि-रचित पासनाह-चरियं पत्र, १८७ (२) पार्श्वनाथ-चरित्र भावदेव सूरिकृत, सर्ग ६, श्लोक १४५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy