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भगवान् महावीर के निर्वाण से ३५० वर्ष, पूर्व, पौष वदि १० के दिन, विशाखा नक्षत्र का योग होने पर, माता वामादेवी ने एक बड़े सुन्दर और तेजस्वी बालक को जन्म दिया। स्वप्न-सूचना के अनुसार उनका नाम पार्श्वकुमार' रक्खा गया। (१) इतिहासकार भगवान् पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक पुरुष के रूपमें मानते हैं। 'कैम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया', जिल्द १, पृष्ठ १५३ में 'द' हिस्ट्री आव जैमाज' में जार्ल कार्पेण्टियर ने लिखा है- "प्रोफेसर याकोबी तथा अन्य विद्वानों के मत के आधार पर, पार्श्व ऐतिहासिक पुरुष और जैनधर्म के सच्चे स्थापनकर्ता के रूप में माने जाने लगे हैं। कहा जाता है कि महावीर से २५० वर्ष पूर्व उनका निर्वाण हुआ। वे सम्भवतः ईसा पूर्व ८-वीं शताब्दी में रहे होंगे।" डॉ० याकोबी ने भगवान् पार्श्वनाथ के ऐतिहासिक पुरुष होने का समर्थन 'सेक्रेड बुक आव द' ईस्ट' (जैन-सूत्राज) भाग ४५, पृष्ठ XXI-XXII में किया है। 'स्टडीज इन जैनिज्म' संख्या १, पृष्ठ ६ में उन्होंने लिखा है
"परम्परा की अवहेलना किये बिना हम महावीर को जैन-धर्म का संस्थापक नहीं कह सकते ।....उनके पूर्व के पार्श्व (अंतिम से पूर्व के तीर्थंकर) को जैनधर्म का संस्थापक मानना अधिक युक्तियुक्त है।... पार्श्व के परम्परा के शिष्यों का उल्लेख जैन-आगम ग्रंथों में मिलता है। ...इससे स्पष्ट है कि पार्श्व ऐतिहासिक पुरुष हैं..." 'हिस्ट्री एण्ड कल्चर आव इण्डियन पीपुल' खण्ड २ में 'जैनिज्म' में डॉक्टर ए० एम० घाटगे ने (पृष्ठ ४१२) लिखा है-“पार्श्व का ऐतिहासिकत्त्व जैन-आगम-ग्रंथों से सिद्ध है।" विमलचरण ला ने भी 'इण्डालाजिकल स्टडीज' भाग ३ पृष्ठ । २३६-२३७) में भी उनके ऐतिहासिक पुरुष होने का समर्थन किया है।
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