SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कला कला विनयवान् अर्हन कौशलिक ऋषभदेव प्रभु बीस लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहे। फिर, तिरसठ लाख पूर्व तक राज्यावस्था में रहते हुए उन्होंने पुरुषों की ७२ कलाएँ, महिलाओं के ६४ गुण तथा १०० शिल्पों की शिक्षा दी। ७२ कलाओं का उल्लेख समवायाङ्गसूत्र (समवाय ७२) में निम्नलिखित रूप में है। १ लेहं = लेख २ गणियं = गणित ३ रूवं = रूप ४ नद्रं = नाट्य ५ गीयं = गीत ६ वाइयं = वाद्य ७ सरगयं = स्वर. जानने की ८ पुक्खरगयं = ढोल . इत्यादि बजाने की कला ६ समतालं = ताल देना १० जूयं = जूआ ११ जणवायं = वार्तालाप की ११ पोक्खच्चं = नगर के रक्षा की कला १३ अट्ठावयं = पासा खेलने की १४ दगमट्टियं = पानी और मिट्टी __ कला मिलाकर कुछ बनाने की कला मिलाकर कुछ न १५ अन्नविहिं = अन्न उत्पन्न करने १६ पाणविहीं पानी उत्पन्न करने की कला और शुद्ध करने की कला १७ वत्थविहिं वस्त्र बनाने की १८ सयणविहीं शय्या-निर्माण की कला कला १६ अजं=संस्कृत-कविता बना- २० पहेलियं प्रहेलिका रचनेकी कला नेकी कला २१ मागहियं छंद विशेष २२ गाहं प्राकृत-गाथा रचने की बनाने की कला कला २३ सिलोग=श्लोक बनाने की २४ गंधजुत्ति सुगंधित पदार्थ बनाकला ने की कला २५ मधुसित्थं=मधुरादिक छःरस २६ आभरणविहीं अलङ्कार बनाने बनाने की कला अथवा पहनने की कला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy