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इन्द्र के आदेश पर कुबेर ने १२ योजन लम्बी और ९ योजन चौड़ी 'विनीता' नगरी बसायी और उसका दूसरा नाम 'अयोध्या' रखा । यह अयोध्या नगरी लवरण समुद्र से ११४ योजन ११ कला की दूरी पर है और वैताढ्य से भी उतनी ही दूरी पर है । यह चूल हिमवंत पर्वत से ४०२ योजन से कुछ अधिक दूरी पर है । राज्याभिषेक के समय ऋषभदेव की उम्र बीस लाख वर्ष पूर्व ' थी ।
भगवान् ऋषभदेव के लिए शास्त्रों में 'पढम राया' प्रथम राजा, 'पढम भिक्खायरे' प्रथम भिक्षाचर, 'पढम जिणे' प्रथम जिन, ' पढम तित्थंकरे' प्रथम तीर्थंकर संज्ञा मिलती है ।
ऋषभदेव ने ही कुम्भकार की, लुहार की, चित्रकार की, जुलाहे की और नापित की कलायें प्रचलित करायीं ।
उनके सम्बन्ध में कल्पसूत्र में आता है :
" उसमे णं अरहा कोसलिए दक्खे दक्खपइण्णे पडिरूवे अल्लीणे भद्दर विणीए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमार वासमझे वसित्ता तेवट्ठि पुव्वसय सहरसाईं रज्जवासमज्भे वसइ तेवट्ठि च पुव्वसयसहस्साईं रज्जवास मज्मे वसमाणे लेहाइआअ गणियप्पहारणाओ सऊरणरूयपज्जवसाणाओ बावत्तरि कलाओ, चरसट्ठि महिलागुणे, सिप्पसयं चकम्मारणं, तिन्निवि पयाहि आए उवदिसइ...
""
और
- कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सूत्र २११, पत्र ४४४ । दक्ष, सत्यप्रतिज्ञावाले, सुन्दर रूपवाले, सरल परिणामवाले (१) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पत्र १२७ -१ | आवश्यक सूत्र मलयगिरि टीका, पत्र ९६५-२ । आवश्यक निर्युक्ति मूल, श्लोक १३१ ।
आवश्यक चूरिण पत्र, १५४ ।
वसुदेव हिंडी पृष्ठ, १६२ । विविध तीर्थकल्प पृष्ठ, २४ । (२) कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्र ४४१ |
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