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________________ इस सुषमा - दुषमा आरे में जब पल्योपमका काल शेष रहता है, तो कुलकी स्थापना करने के स्वभाववाले, विशिष्ट बुद्धिवाले, लोकव्यवस्था करने - वाले पुरुष विशेष 'कुलकरों' का जन्म अनुक्रम से होता है'। जैन-शास्त्रों में ७, १४ अथवा १५ कुलकरों के नाम मिलते हैं२ । जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति में उनके नाम इस प्रकार दिये हैं ( ३ ) ऋषभदेव -: 3 १ सुमति, २ प्रतिश्रुति, ३ सीमङ्कर, ४ सीमंधर, ५ क्षेमङ्कर, ६ क्षेमंधर, ७ विमलवाहन, ८ चक्षुष्मान, ६ यशस्वी, १० अभिचन्द्र, ११ चन्द्राभ, १२ प्रसेनजित्, १३ मरुदेव, १४ नाभि, १५ ऋषभ जिन ग्रन्थों में सात कुलकरों के नाम मिलते हैं, उन में निम्नलिखित नाम आते हैं : १ - विमलवाहन २ - चक्षुष्मान ३ - यशस्वी ४- अभिचन्द्र ५ - प्रसेनजित ६ - मरुदेव ७-नाभि (१) स्थानाङ्गसूत्रवृत्ति, सूत्र ७६७, पत्र ५१८-१ ( २ ) ' तत्र सप्तैव कुलकराः, क्वचित्पञ्चदशापि दृश्यन्ते इति' । स्थानाङ्गसूत्र, वृत्ति, पत्र ५१८ - १ ( ३ ) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, पत्र १३२-२ Jain Education International १४ कुलकरों का उल्लेख पउमचरिय, उद्देसा ३, श्लोक ५०-५५ में मिलता है । उस में ऋषभदेव की गणना कुलकरों में नहीं की गयी है । (४) स्थानाङ्ग सूत्रवृत्ति सूत्र, ५५६, पत्र ३६८-१ आवश्यक चूएि, पत्र १२६; आवश्यक निर्युक्ति, पृष्ठ २४, श्लोक ८ १; त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १, सर्ग २ श्लोक १४२-२०६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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