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________________ (१६) इतना ही काल गणित का विषय हैं । आगे का काल औपमिक है । (') औपमिक काल के दो भेद हैं । ‘पल्योपम' और 'सागरोपम' (२) सुतीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन-भेदन न किया जा सके, ऐसे 'परमाणु' को सिद्ध पुरुष सब प्रमाणों का 'आदि प्रमाण' कहते हैं। अनन्त परमाणुओं का समुदाय = १ उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणका ८ उत्श्चक्षणलक्षिणका . .. १ उर्ध्वरेशु ८ उध्वरेणु १ त्रसरेणु . ८ त्रसरेणु १ रथरेणु ८ रथरेणु १ देवकुरु और उत्तरकुरुके मनुष्य का बालाग्न ८ देवकुर उत्तरकुरु के मनुष्य का = १ हरिवर्ष और रम्यक के बालाग्र मनुष्य का बालाग्र १-एसो पण्णवणिज्जो कालो संखेज्जओ मुणेयव्वो। वोच्छामि असंखेज्जं कालं उवमाविसेसेणं ।। ७२ ॥ . २-सत्थेण सुतिक्खेएवि छित्तुं भित्तुं व जं किर न सका। तं परमाणु सिद्धा वयंति आईपमारणारगं ।। ७३ ॥ परमारणू तसरेणू रहरेणू अग्गयं च वालस्स । लिक्खा जूया य जवो अठ्ठगुणविवड्डिया कमसो ॥ ७४ ।। जवमज्झा अठ्ठ हवन्ति अंगुलं छच्च अंगुला पाओ । पाया य दो विहत्थी दोय विहत्थी हवइ हत्थो ॥ ७५ ॥ . दंडं धरण जुगं नालिया य अक्ख मुसलं च चउहत्था । अठेव धरणुसहस्सा जोयणमेगं माणेणं । एयं धरगुप्पमारणं नायव्वं जोयणस्स य पमाएं । कालस्स परीमाएं एत्तो उद्धं पवक्खामि ॥ ७७ ॥ जं जोयणविच्छिणणं तं तिगुणं परिरएण सविसेसं । तं जोयरामुन्विद्धं जाण पलिओवमं नाम ॥ ७८ ॥ . - ज्योतिष्करण्डक सटीक, अधिकार २, पत्र ४१-४२ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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