SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८) (पृष्ठ १७ की पादटिप्परिंग का शेषांश) भगवती सूत्र सटीक शतक ६, उद्देसा ७, पत्र २७६ - २; अनुयोगद्वारसूत्र सटीक पत्र १७९ - २; जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सटीक वक्षस्कार २, सूत्र १८, पत्र ६१ आदि में यही अंक क्रम है । वल्लभी - वाचनानुसार कालसंख्या -क्रम- पुव्बारण सयसहस्सं [पुव्व ] चुलसीइगुणं भवे लयंगमिह । तेसिपि सहसहस्सं चुलसीइगुणं लया होइ ॥ ६४॥ तत्तो महालयाणं चुलसीइ चेव सयसहस्सारिण । नगिंगं नाम भवे एत्तो वोच्छं समासेर ॥ ६५ ॥ नलिरण महानलिएांगं हवइ महान लिगमेव नायव्वं । पउमंग तह परमं तत्तोय महापउम अंगं ॥ ६६ ॥ हवइ महा पउमं चिय तत्तो कमलंगमेव नायव्वं कमलं च महाकमलंगमेव परतो महाकमलं ॥ ६७ ॥ कुमुयंगं तह कुमुयं तत्तो या तहा महा महाकुमुयअंगं । ततो य परतोय महा कुमुयं तुडियंगं बोधव्वं ॥ ६८ ॥ तुडिय महातुडियंगं महतुडियं अडडंग मडड परं । परतोय महाडडअंग तत्तो य महाअडडमेव ॥ ६६ ॥ उहंगंपिय हं हवइ महल्लं च ऊहगं तत्तो । महाऊहं हवइ हु सीसपहेलिया होइ नायव्वा ॥ ७० ॥ एत्थं सयसहस्साणि चुलसीई चेव होइ गुरणकारो । एक्केक्कंमि उ ठाणे अह संखा होइ कालंमि ॥ ७१ ॥ - ज्योतिष्करण्डक सटीक, अधिकार २, पृष्ठ ३६ वल्लभी वाचनानुसार शीर्षप्रहेलिका में ७० अंक और १५० सिफर होते हैं । वह इस प्रकार है * १८७६५५१७६५५०११२५६५४१६००६६६६८१३४३०७७०७६७४६५४६४२६१६७७७४७६५७२५७३४५७१८६८१६०००००००००००००० ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००00000 -000000000000000000000000000000000000000000 0000000000000000000000000000000000000000 काल लोकप्रकाश, पृष्ठ (१४४ प्रकाशक जैन-धर्म- प्रसारक - सभा, भावनगर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy