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________________ (११) (३) जीमूत-इस प्रकार की वृष्टि से १० वर्ष तक पृथ्वी धान्य उत्पन्न कर सकती है। (४) झिमिक—यह वर्षा निरन्तर आवश्यक होती है और इससे एक वर्ष तक पृथ्वी में धान्य उपजाने का गुण होता है। इस चौथे आरे में उत्तम प्रकार की वर्षा योग्य काल में होती है । इससे भूमि स्निग्ध, सरस और बहुत अधिक फल देने वाली होती है । इस काल में दुभिक्ष नहीं पड़ते, कोई चोर नहीं होता और रोग, शोक, आधि-व्याधि आदि बहुत कम होता है। इस काल में कोई न्यायोल्लंघन करने वाला नहीं होता । राजा प्रायः धार्मिक होते हैं । इस चौथे आरे में २३ तीर्थंकर, ११ चक्रवर्ती ६ वासुदेव-बलदेव होते हैं।' दृषम इस आरे के प्रारम्भ में संस्थान २ और संघयण' छ होते हैं। लेकिन, संघयण कम से कम होते हुए आखिर में से सेवात नामका एक ही रह जाता है। इस आरे के प्रारम्भ में आदमी की उत्कृष्ट आयु १३० वर्ष की होती है और घटते-घटते ५-वें आरे के अन्त में २० वर्ष की आयु रह जाती है । इस आरे का आदमी प्रमाए में ७ हाथ का होता है और घटते-घटते १ हाथ का रह जाता है। चौथे आरे में जन्मा व्यक्ति यदि पाँचवें आरे में आ गया, तो उसे मोक्ष होना सम्भव है; पर जिसने पाँचवें आरे में जन्म लिया, उसका तो मोक्ष होगा ही नहीं। इस आरे में १० वस्तुएं नहीं होती :(१) काललोकप्रकाश पृष्ठ १८५ (२) संस्थान ६ प्रकार के होते हैं-१ समचतुरस्त्र, २ न्यग्रोधपरिमंडल ३. सादिसंस्थान ४. वामनसंस्थान ५. कुब्जसंस्थान ६. हुण्डसंस्थान -समवायांग सूत्र १५५ । पत्र १४६-२. (३) संघयण ६. प्रकार के होते हैं :--१. वज्रऋषभनाराच २. ऋषभनाराच ३. नाराच ४. अर्धनाराच ५. कोलिका ६. सेवात । -समवायांग सूत्र १५५ (४) जिस रचना में मर्कटबन्ध बेठन और खीला न होकर, यों ही हड्डियाँ .. आपस में जुड़ी हों, उसे सेवात संहनन कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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