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________________ (१२) (१) केवल ज्ञान' (२) मनःपर्यव ज्ञान (३) परमावधि ज्ञान (४) क्षपक श्रेणी' (५) उपशम श्रेणी (६) आहारक शरीर (१) (अ) ज्ञान पाँच प्रकार के बताये गये हैं- (१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) मनःपर्यायज्ञान और (५) केवलज्ञान । -स्थानाङ्ग सटीक ४६३, पत्र ३४७-१ (आ) केवलज्ञान...सकलं तु सामग्री विशेषतः समदभूतसमस्तावरपक्षयापेक्षं निखिलद्रव्यपर्याय साक्षात्कारिस्वरूपं केवलज्ञानम् ॥ २३ ॥ -प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार द्वितीय परिच्छेद । अर्थ-समस्त घाति कर्मों के क्षय से उत्पन्न होने वाला, समस्त द्रव्य और पर्यायों को साक्षात्कार करने वाला ज्ञान केवलज्ञान है । (२) मनःपर्याय ज्ञान-संयमविशुद्धिनिबन्षनाद् विशिष्टावरणविच्छेदाज्जातं मनोद्रव्य पर्यायालम्बनं मनः पर्यायज्ञानम् ॥ २२ ॥ -प्रमाण नयतत्त्वालोकालङ्कार द्वितीय परिच्छेद । अर्थ-चारित्र की विशुद्धि के कारण मनः पर्यायावरण कर्म के उच्छेद हो जाने से मनोद्रव्य के पर्यायों (आकृतियों) को साक्षात्कारने करनेवाला ज्ञान मनः पर्याय ज्ञान है। (३) अवधिज्ञानावरणविलयविशेषसमुद्भवं भवगुणप्रत्ययं रुपिद्रव्यगोचरमवधिज्ञानम् ॥ २१॥ -प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार द्वितीय परिच्छेद । अर्थ-अवधिज्ञानावरण कर्म के नाश से उत्पन्न होनेवाला, भव' और गुरण कारणवाला, रूपी पदार्थो को साक्षात्कार करनेवाला ज्ञान अवधि-ज्ञान है। (४) जिसमें मोह की शेष प्रकृतियों का क्षय चालू हो, वह क्षपक श्रेणी है। -तत्त्वार्थसूत्र, पृष्ठ ३७४ (५) जिस अवस्था में मोह की शेष प्रकृतियों का उपशम चालू हो वह उपशमक श्रेणी है। -तत्त्वार्थसूत्र, पृष्ठ ३७४ (६) प्रशस्त पुद्गल द्रव्य जन्य विशुद्ध निष्पाप कार्यकारी और व्याघात बाधारहित होता है तथा वह चौदह पूर्व वाले मुनि को ही पाया जाता है उसे आहारक शरीर वहते हैं। -तत्त्वार्थसूत्र, पृष्ठ ११४-११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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