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________________ जाती हैं । इस आरे में आदमी चार प्रकार के होते हैं :-एका, प्रचुरजंघा, कुसुमा और सशमना । एका पुरुष सर्वश्रेष्ठ ढंग का होता है, प्रचुरजंघावाले की जाँध अत्यन्त पुष्ट होती है, कुसुमा पुरुष फूल के समान कोमल होता है और सुशमना पुरुष सम्यक प्रकार की शक्ति से युक्त होता है । भूमि का स्वरूप और कल्पवृक्षों का जो वर्णन पूर्व प्रकरण में कहा गया है, तद्रूप ही इस आरे में भी समझना चाहिए। परन्तु, उनके वर्ण, गन्ध, फल आदि में न्यूनता आ जाती है। इस आरे का भोग ३ कोड़ाकोड़ी व्यतीत हो . जाने पर, तीसरे आरे सुषम-दुषम का भोग, प्रारम्भ होता है । सुषम-दुषम सुषम आरे की समाप्ति से बाद इस सुषम-दुषम आरे का प्रमाए दो कोटाकोटि समझना चाहिए। इस आरे को हम तीन विभागों में बाँट सकते हैंप्रथम, मध्यम और अन्तिम । एक-एक विभाग की काल-स्थापना इस प्रकार हैं-६६६६६६६६६६६६६६६६३ । इस आरे के प्रथम दो भागों में कल्पवृक्ष पूर्ववत् रहते हैं। पर क्रम से घटते रहते हैं। इस काल में मनुष्य भी अनुक्रम से घटता जाता है। इस आरे में मनुष्य की ऊँचाई १ कोस, तथा आयुष्य १ पल्योपम होता है। और, मनुष्य को ६४ पसलियाँ होती हैं। बालकों का प्रतिपालन ७६ दिवस मात्र करना पड़ता है। उनकी अवस्था ७ प्रकार की होती है और एक-एक अवस्था का. भोग ११ दिवस, १७ धड़ी ८ पल के लगभग आता है। इस काल में मनुष्य में प्रेम, राग, द्वेष, गर्व सब की अभिवृद्धि होती है। और, मनुष्य १-१ दिन का अंतर देकर आँवल के बराबर आहार करता है। इस काल में कल्पवृक्ष और पृथ्वी का रस आदि घट जाता है। मनुष्य में फल-फूलऔषधि आदि के संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ती रहती है। इस संग्रह- प्रवृत्ति से मनुष्य में परस्पर कलह की भी मात्रा बढ़ती है। अतः इस तीसरे आरे में जब पल्योपम का आठवां भाग शेष रहता है, तो 'कुलकर' का जन्म (१) काललोकप्रकाश पृष्ठ १७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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