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(८) नाना प्रकार की सुगंधियाँ पृथ्वी पर व्याप्त रहती हैं । और स्थान-स्थान पर वन' होते हैं। ,
इस युग के मनुष्य युगधर्मी होते हैं। और, समग्न लक्षणों से युक्त होते हैं । युगलिये पुरुष भी अल्प मात्रा में रहते हैं। शालि प्रमुख सर्व अन्न और इक्षु प्रमुख सभी वस्तुएं स्वमेव उत्पन्न होती हैं। परन्तु, मनुष्य तीन दिन के अन्तर पर अरहर की दाल के प्रमाण भर भोजन करते हैं २ ।
सुषम
_____ इस द्वितीय आरे में भी सुख-ही-सुख रहता है; पर सुषम-सुषम आरे के इतना नहीं। इस युग के प्राणी दो दिनो के बाद आहार करते हैं और वह भी बेर के फल-जितनी मात्रा में । इस काल के आरम्भ में मनुष्य की ऊँचाई दो कोस और आयु दो पल्पोपम की होती है । पर, सुषम-काल समाप्त होते-होते क्रम से घटते रहने के कारए मनुष्य की आयु एक पल्पोपम और ऊँचाई एक कोस की रह जाती है। इस इसे आरे में मनुष्य की पसलियाँ १२८ मात्र रह (१) वनों के नाम निम्नलिखित हैं :
भेरुताल वन, हेरुताल वन, मेरुताल वन, पभयालवन, साल वन, सरल वन, सप्तवर्ण वन, पूअफली वन, खज्जुरी वन, नारियली वन' (जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सटीक; पत्र ६७-२)
और वन की परिभाषा कल्पसूत्र की सन्देहविषौषधि टीका में लिखा है-'वनान्येकजातीय वृक्षारिण' जिसमें एक जातीय वृक्ष हों वह वन है और 'वनखंडान्यनेकजातीयोत्तमवृक्षारिण' जिसमें अनेक जाति के उत्तम वृक्ष हों वह वनखंड है । (पत्र ७५) भगवती शतक सटीक, शतक १, उद्देशक ८, सूत्र ६४ (भाग १, पत्र ६२-२ तथा ६३-१)में लिखा है' एक जातीय वृक्ष समुदाये' और जिसमें नाना प्रकार के वृक्ष हों उनके लिए 'वरणविदुग्गंसि'
(वनविदुर्ग) लिखा है। (२) काललोकप्रकाश पृष्ठ १४६
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