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(३४३) औपपाति के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों में भी कुछ तापसों के नाम मिलते हैं :
१ चंडिदेवगा' --चक्र को धारण करने वाले, चंडी के भक्त, २ दुगसोयारिय२--सांख्य मत के अनुयायी जो पानी बहुत गिराते हैं। ३ कम्मारभिक्खु-देवताओं की द्रोणी लेकर भिक्षा मांगने वाले ४ कुव्वीए ---कूचिकः, कूर्चन्धरः-दाढ़ी रखने वाले ५ पिंडोलवा --भिक्षा पर जीवन-निर्वाह करने वाला ६ ससरक्ख सचित्तरजोयुक्ते-(रजोयुक्त) धूलिवाला तापस ७ वणीमग--याचक । ठाणांगसूत्र ठाणा ५ उद्देशा ३ में पाँच वणीमग गिनाये गये हैं:--पंच वणीमगा पं० तं० अतिहिवणीमते किविणवणीमते माहणवणीमते साणवएीमते समणवणीमते
-सूत्र ४४६ पत्र ३३६-२ ८ वारिभद्रक - अभक्षाः शैवलाशिनो नित्यं स्नानपादादिधा
वनाभिरता वा (पानी में ही कल्याण मानने वाले) ९ वारिखल-परिव्राजकास्तेषां द्वादश मृत्तिकालेपा भोजन शोध
नका भवन्ति ।...( मिट्टी से बारह बार भाजन शुद्ध करने वाले )
१-सूत्रकृतांग, प्रथम भाग, पत्र १५४-१ (नियुक्ति) २-पिंडनियुक्ति मलयगिरि की टीका सहित, गाथा ३१४ पत्र ६८-१ ३-वृहत्कल्पभाष्य ३, ४३२१, विभाग ४, पृष्ठ ११७० ४-वही १, २८२२, विभाग ३, पृष्ठ ७६८. ५-उत्तराध्ययन चूणि पत्र १३८ ६-आचारांग सूत्र २, १, ६, ३ ७-सूत्रकृतांग प्रथम भाग, पत्र १५४-१ (नियुक्ति) ८-वृहत्कल्पभाष्य १, १७३८-विभाग २, पृष्ठ ५१३ .
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