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(३०८) "तुम मानते हो कि नारक तो परतंत्र हैं और दुःखी होने से हमारे सम्मुख नहीं आ सकते । अतः सुनकर ही उनके विषय में विश्वास किया जा सकता है; परन्तु देवता तो स्वच्छंदचारी और दिव्य प्रभावयुक्त होते हैं । पर, इतने पर भी वे दृष्ट नहीं होते । इसलिए देवों के विषय में तुम्हें संशय होता है।
"पर, मनुष्य से सर्वथा भिन्न जाति वाले देवों के सम्बन्ध में तुम शंका मत करो। तुम को यदि देखना ही है तो ( मेरी वंदना के लिए इसी समवसरण में आये हुए भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक ) चार प्रकार के देवों को प्रत्यक्ष देखो।
___"पर, इसके पहले भी तुम्हें संशय नहीं करना चाहिए, क्योंकि सूर्य, चन्द्र आदि ज्योतिष्क देव तो प्रत्यक्ष ही दिखते हैं। कुछ देवों के प्रत्यक्ष हो जाने पर सभी देवों के विषय में अस्तित्व की शंका क्यों ? और, लोक में देव-कृत अनुग्रह और उपधात भी तो देखे जाते हैं।
"तुम्हारा मत है कि (सूर्य चन्द्रादि विमान) शून्य नगर की तरह आलय मात्र ही हैं। इसका उत्तर यह है कि उनमें रहने वाले सिद्ध ही देव माने जायेंगे; क्योंकि आलय सर्वदा के लिए शून्य कभी नहीं होते ।
"तुम कहोगे कि 'कौन जानता है कि वह क्या होगा ?' वे निःसंशय विमान ही हैं; क्योंकि वे रत्नमय हैं और नभोगामी हैं-जैसे विद्याधरों आदि देवों का विमान !"
___"तुम यह सब कह सकते हो कि 'यह सब माया है, तो उस माया को को जो करने वाले होंगे, वे देवता ही होंगे। और, यह सब माया मात्र नहीं है। यदि माया मात्र ही होते तो नगर की तरह सर्वदा उनकी उपलब्धि न होती।
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