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(७)
मौर्य
यह सुनकर कि उनके पूर्व जाने वालों ने दीक्षा ले ली, तीर्थकर भगवान् .. के पास उनकी वंदना करके उपासना करने के विचार से मौर्य गये । उन को सम्मुख पहुँचा देख कर, भगवान ने उनका नाम और गोत्र कह कर सम्बोधित किया और कहा- "तुम क्या विचार कर रहे हो। तुम्हें शंका है कि देव हैं या नहीं ? तुम्हें वेदवाक्यों' का सही अर्थ नहीं मालूम । उनका अर्थ इस प्रकार है।
टीकाकार ने इस संदर्भ में देवास्तिव बतलाने के लिए निम्नलिखित वेदवाक्य दिये हैं :(१) स एष यज्ञायुधी यजमानोऽञ्जसा स्वर्गलोक गच्छति (२) अपाम सोमंअमृता अभूम अगमन् ज्योतिरविदाम देवान् कि
नूनमस्तात् तृणवदरातिः किमु मूर्तिमतृतमय॑स्य....
देवों के अभाव को बतलाने वाला निम्नलिखित वेद वाक्य है (३) को जानाति मायोपमान गीर्वाणान्द्रि-यम-वरुण कुवेरादीन्...
इन वेद वाक्यों का अर्थ तुम यह लगाते हो। (१) "स एष यज्ञायुधी....' वह यज्ञ ही दूरितवारण क्षय (पापों को दूर
करने में समर्थ) आयुध वाला यजमान अनायास स्वर्गलोक को जाता है। (२) “अपाम सायममता..." हम लोग सोम लता रस को पी लिये।
न मरने वाले हो गये और स्वर्ग को प्राप्त हो गये । देवत्व को प्राप्त हो गये। हम लोगों से ऊपर की तृणवत् व्याधि क्या करेगी। अमृतत्व
प्राप्त पुरुष के लिए जरा-व्याधि आदि कर सकते हैं ? (३) माया के तुल्य इन्द्र यम वरुण कुवेर आदि देवों को कौन जानता है।
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