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(२६१) "हे सौम्य ! जीव और शरीर के आधार और उपयोग में आनेवाले, प्रत्यक्षादि प्रमाणों से सिद्ध, इन भूतों की सत्ता स्वीकार कर लो।
"पूछा जा सकता है कि वे भूत सचेतन कैसे हैं ? इसका उत्तर यह है कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु सचेतन हैं, कारण यह है कि उनमें जीवन के लक्षण दिखलायी पड़ते हैं । आकाश अमूर्त है । वह जीवन के लिए आधार मात्र है । वह सजीव नहीं है । ___ “जन्म, जरा, जीवन, मरण, रोहण, आहार, दोहद, व्याधि और रोगचिकित्सा आदि से नारी के समान ही वृक्ष भी सचेतन हैं (कुष्माण्डी, बीजपूरक आदि वृक्षों में गर्भिणी के समान इच्छा होती है।) ___"हे व्यक्त ! स्पृष्टप्ररोदिका-सरीखे पौदे स्पर्श मात्र से कीड़ों की तरह सिकुड़ जाते हैं; बल्ली आदि आश्रय की खोज में फैलती हैं; शमी आदि वृक्षों में सोने, जागने, संकोचन आदि के गुण होते हैं; और बकुल आदि में शब्दादि विषय ग्रहण करने का सामर्थ्य होता है; बकुल, अशोक, कुरबक, विरहक, चम्पक, तिलक वृक्ष शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का उपयोग करते हैं । इसलिए वृक्ष सचेतन है। ___ "तरु, विद्रुम, लवरण, पत्थर आदि अपने उद्गम-स्थान पर रहते हुए सचेतन हैं; क्योंकि इन वस्तुओं को भी पुनः-पुनः अंकुर निकला करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे अर्श आदि की स्थिति में मांस निकल आता है।
“पृथ्वी खोदने से प्राकृतिक रूप में जल निकलता है अतः जल भी वैसा ही सजीव है जैसे मेंढक । आकाश से पानी गिरता है। अतः वह भी मछली के समान ही सजीव है।
"बिला दूसरों से प्रेरणा प्राप्त किये, तिरछी चाल से, अनियमित दिशाओं में चलने के कारण हवा, गाय की तरह, सचेतन है । अग्नि सचेतन है; क्योंकि आहार से उसे वृद्धि-विकार प्राप्त होता है।
"पृथ्वी, जल, तेज और वायु-सरीखे चार भूतों से बना हुई जो शरीर
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