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________________ (२६८) "इस श्रुति में विज्ञान-रूप होने से (विज्ञान से अभिन्न होने से) जीव विज्ञानघन है। विज्ञान प्रति प्रदेश में होने से, यह विज्ञानघन सर्वतो व्यापी है। नैय्यायिक लोग जिस तरह स्वरूपतः जीव को जड़ और उसमें बुद्धि को समवेत मानते हैं, ऐसा नहीं है। वह विज्ञानधन घटादि विज्ञान की तरह भूतों से उत्पन्न होता है और वह विज्ञानघन विनिश्चमान उन्हीं भूतों में काल क्रम से (अन्य वस्तु के उपभोग में आने से, ज्ञेय भाव से) विनाश को प्राप्त कर जाता है। “एक ही यह विज्ञानधन जीव तीन स्वाभावों वाला है। अन्य वस्तु के उपयोग काल में, पूर्व विज्ञान के उपयोग से, यह विनस्वर-रूप होता है। अन्य विज्ञानोपयोग होने पर वह उत्पाद-स्वरूप होता है। अनादि काल से आता हुआ, सामान्य विज्ञान मात्र की परम्परा से, वह जीव अविनाशी होता है। इसी तरह सभी वस्तुओं को उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ( अविनश्वरता). स्वभाव ही जानना चाहिए । न तो कोई वस्तु सर्वथा उत्पन्न होती है और न विनाश को ही प्राप्त होती है।। ___ "अन्य वस्तु के उपयोगकाल में, पूर्व की ज्ञान-संज्ञा नहीं रहती है; क्योंकि तत्काल दिखलायी देने वाली वस्तु के उपयोग से वह ज्ञान संज्ञा हो जाती है ( इससे यह बतलाया गया कि जब घटोपयोग-निवृत्ति होने पर पटोपयोग उत्पन्न होता है, तब घटोपयोग संज्ञा नहीं रहती है।) इसलिए वेदवाक्यों में विज्ञानघन' नाम वाला वह जीव ही है।। "ऐसा होने पर भी तुम्हारी यह मान्यता है कि, घटादि भूत के होने पर घटज्ञान के उत्पन्न होने से और उसके अभाव से घटादि विज्ञानाभाव होने से वह विज्ञान भूतधर्म है। यह तुम्हारा विचार ठीक नहीं है; क्योंकि वेदसिद्धांत में उन घटादि भूतों के रहने और नहीं रहने पर भी विज्ञान होता ही है और सूर्य-चन्द्र के अस्त हो जाने पर अग्नि और वाणी इन दोनों के शांत होने पर उस समय पुरुष में (किं ज्योति ) कौन-सी ज्योति' है ? १-टीकाकार ने यहाँ लिखा है : अस्तमिते आदित्ये, याज्ञवल्कयः, चन्द्रमस्यस्तमिते, शान्तेऽग्नो, शान्तायां वाचि, किं ज्योतिरेवायं पुरुषः, आत्मज्योतिः, समाडिति होवाच...... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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