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________________ (२४०) दधिवाहन भयभीत होकर भाग गया। शतानीक के सैनिकों ने अपनी इच्छानुसार चम्पा नगरी लूटी। एक ऊँट-सवार धारिणी और वसुमती को लेकर भागा। शतानीक विजयी होकर कौशाम्बी लौट कर आया । धारिणी के रूप पर, मोहित होकर सुभट ने उससे विवाह करने की बात की । शील की रक्षा के लिए धारिणी अपनी जिह्वा कुचल कर मर गयी। तब ऊँट-सवार ने वसुमति को कौशाम्बी लाकर धनावह सेठ के यहाँ बेंच दिया। सेठ पुत्रीवत् वसुमती का पालन-पोषए करने लगा। उत्तम गुणों से युक्त और चन्दनसमान शीतल व्यवहार वाली होने से वह ‘चन्दना' नाम से पुकारी जाने लगी। कालान्तर में चंदना युवती हुई । उसकी रूप-राशि दिन-पर-दिन निखरने लगी। धनावह श्रेष्ठि की स्त्री मूला को उसे देख कर ईर्ष्या होने लगी। उसके मन में प्रायः यह विचार उठता- "यदि श्रेष्ठि इससे विवाह कर लेंगे तो मेरा क्या होगा ?" . एक दिन दोपहर को श्रेष्ठि घर आया। कोई नौकर उपस्थित नहीं था। चन्दना ने ही श्रेष्ठि का पैर धुलवाया। उस समय उसका सुन्दर केशपाश जमीन पर लटकने लगा। उसका केशपाश कीचड़ में पड़ कर खराब न हो, इस विचार से श्रेष्ठि ने उले उठा कर बाँध दिया । श्रेष्ठि की पत्नी मूला यह सब झरोखे से देख रही थी। अब उसे अपनी आशंका सत्य होती नजर आयी। अतः जब श्रेष्ठि बाहर चला गया तो उसने नाई बुला कर उसके बाल मडवा दिये । पाँव में बेड़ी डाल कर उसे एक कोठरी में बंद कर दिया और नौकरों को डाँट दिया कि कोई श्रेष्ठि से उसके संबंध में कुछ न बताये। सायंकाल को जब श्रेष्ठि घर आया और चन्दना नहीं दिखलायी पड़ी तो उसने नौकरों से चन्दना के बारे में पूछ-ताछ की। नौकरों ने उसे कुछ नहीं बताया। यह सोच कर कि चन्दना सो गयी होगी, श्रेष्ठि शांत रह गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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