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पूछी। पर, तथ्यवादी ने बताने में अपनी असमर्थता प्रकट की ।
फिर, राजा ने सुगुप्त नामक मन्त्री से पूछा । सुगुप्त ने कहा- "महाराज अभिग्रह के अनेक प्रकार होते हैं; लेकिन किसके मन का क्या अभिप्राय है, यह बताना कठिन है ।” उन्होंने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव विषयक अभिग्रह तथा सात पिंडेवरगा पानेषणाओं का निरूपण करके साधुओं के आहार- पानी लेने-देने की रीतियों का वर्णन किया ।
राजा शतानीक ने प्रजा को आहार- पानी देने की विधियों से अवगत करा दिया कि भगवान् महावीर के आने पर इस तरह आहार- पानी दिया जाये । प्रजा ने भी उसका पालन करके भगवान् को भिक्षा देने का प्रयास किया पर भगवान् ने भिक्षा नहीं ली और कोई भी भगवान् के आग्रह को भाँप न सका ।
भगवान् के अभिगृह को छः महीने पूरे होने में केवल पाँच दिन ही शेष थे । भगवान् अपने नियम के अनुसार कौशाम्बी में भिक्षा के लिए घूमते हुए धनावह नामक श्रेष्ठि के घर पर गये । यहाँ आपके अभिगृह पूर्ण होने में कुछ न्यूनता रही । अतः, भगवान् वापस लौट रहे थे कि चन्दना की आँखों में में अश्रु बह उठे । भगवान् ने अपना अभिग्रह सम्पूर्ण हुआ जान कर, राजकुमारी चन्दना के हाथसे भिक्षा ग्रहण की।
उस चन्दना की कथा इस प्रकार है- " चम्पा नगरी में दधिवाहन - नामक राजा राज्य कर रहा था । उसको धारिणी नामकी रानी और वसुमती - नामकी पुत्री थी । किसी कारण से कौशाम्वी के राजा शतानिक ने एक ही रात में नाव द्वारा सेना ले जाकर चम्पा को घेर लिया । चम्पा का राजा
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१ - "इओ य सयाणिओ चंपं पधाविओ दहिवाहणं गेण्हामित्ति, गावा कडएण गतो एगाए रत्ती ए, अचिंतिया चेव णगरी वेढिया, तत्थ दधिवाहणो. पलात्तो ।” आवश्यक चूरिंग भाग- १ पृष्ठ ३१८
कौटिल्य अर्थशास्त्र की टीका में 'रात्रि' से दिन-रात लेने को लिखा है । ( देखिए - कौटिल्य अर्थशास्त्र का अंग्रेजी अनुवाद, पृष्ठ ६७ की पादटिप्पणि २ ) 'रात्रि' का अर्थ दिन-रात भी होता है, यह आप्टे की संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी, भाग ३, पृष्ठ १३३७ पर दिया गया है । उसमें महाभारत आदि के प्रमाण भी दिये हैं ।
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