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________________ (२३८) फैल गयी कि भगवान् भिक्षा के लिए निकलते तो हैं; लेकिन बिला कुछ लिए ही लौट जाते हैं । एक दिन आप कौशाम्बी के अमात्य सुगुप्स' के घर पधारे । अमात्य की पत्नी नन्दा श्राविका भक्तिपूर्वक भिक्षा देने आयी । लेकिन, भगवान् महावीर बिना कुछ लिए ही चले गये । नन्दा को बड़ा पश्चाताप हुआ । तब दासियों ने कहा - "ये देवार्य तो प्रतिदिन यहाँ आते हैं और बिला कुछ लिये ही चले जाते हैं ।" तब नंदा ने निश्चय किया कि अवश्य ही भगवान् ने कोई कठिन अभिग्रह ले रखा है और उसी कारण से वे आहार ग्रहण नहीं करते । नन्दा इससे बड़ी चिंतित हुई । जब सुगुप्त घर पर आया और उसने नन्दा को उदास देखा तो उसने नन्दा से उदासी का कारण पूछा । नन्दा ने उत्तर दिया – “क्या आपको मालूम है कि भगवान् महावीर आज चार-चार महीनों से भिक्षा के लिए निकलते हैं और बिला कुछ लिये ही लौट जाते हैं ? आपका यह प्रधानपद किस काम का कि चार महीने बीत जाने पर भी उनको भिक्षा न मिले और आपकी यह बुद्धिमत्ता किस काम की, अगर आप उनके अभिग्रह का पता न लगा सकें ?" सुगुप्त ने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया कि मैं ऐसा उपाय करूँगा कि वे भिक्षा ग्रहण कर लें । जिस समय भगवान् के अभिग्रह की बात चल रही थी, उस समय विजया नाम की प्रतिहारी वहीं खड़ी थी । उसने यह बात सुनकर महल में जाकर महारानी मृगावती से कही। रानी भी बड़ी दुःखित हुई और राजा से बोलीं-- "भगवान् महावीर बिला भिक्षा के लिये, नगर से चार महीने से लौट जाते हैं । आपका राजत्व किस काम का कि आप उनके अभिग्रह का पता न लगा सकें । राजा शतानीक ने रानी को शीघ्रातिशीघ्र व्यवस्था करने का आश्वासन दिया । राजा ने तथ्यवादी नामक उपाध्याय से भगवान् के अभिग्रह की बात १ - आवश्यकचूरिण, प्रथम भाग, पत्र ३१६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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