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________________ (२३७) क्षमा माँगी । यहाँ से भगवान् भोगपुर और नंदग्ग्राम होते हुए मेंढियग्राम पधारे । यहाँ एक गोपालक ने भगवान् को कष्ट देने की चेष्टा की । मेदिय से आप कौशाम्बी गये और पौष बदि एकम के दिन भगवान् महावीर ने भिक्षा सम्बन्धी यह घोर अभिग्रह किया - "सिर से मुंडित, पैरों में बेड़ी, तीन दिन की उपवासी, पके हुए उड़द के बाकुल, सूप के कोने में लेकर भिक्षा का समय व्यतीत होने के बाद, द्वार के बीच में खड़ी हुई, दासीपने को प्राप्त हुई और रोती हुई किसी राजकुमारी से भिक्षा मिले तो लेना अन्यथा नहीं ।" ४ इस प्रकार की भीषण प्रतिज्ञा करके भगवान् महावीर प्रतिदिन कौशांबी नगरी में भिक्षा के लिए निकलते थे; लेकिन भगवान् का अभिग्रह पूर्ण नहीं होता था और वे लौट जाते थे । ऐसे घूमते हुए चार महीने व्यतीत हो गये; लेकिन भगवान् का अभिग्रह पूरा नहीं हुआ । सारे नगर में चर्चा १ – भगवती सूत्र, शतक ३, उद्देसा २ २ - बौद्धग्रंथों में इसे भोगनगर लिखा है । वैशाली से कुशीनारा वाले पड़ाव पर यह पाँचवाँ पड़ाव था । ३ – “सामी य इमं एतारूवं अभिग्गहूं अभिगेण्हति चउव्विदव्वतो ४, दव्वतो कुंमासे सुप्पकोणेणं, खित्तओ एलुगं विक्खंभइत्ता कालओ नियत्तेसु भिक्खायरेसु भावतो जदि रायधूया दासत्तरगं पत्ता रियलबद्धा मुंडियसिरा रोयमाणी अब्भत्तट्ठिया, एवं कप्पति, सेसंग कप्पति, कालो य पोस बहुलपाडिव । एवं अभिग्गहं घेत्तणं कोसंबीए अच्छति ।" - आवश्यकचूरिण, भाग १, पत्र ३१६-३१७ । ४ - वत्स अथवा वंश की राजधानी थी। आजकल कोसम नाम से यह प्रसिद्ध है, जो इलाहाबाद से ३० या ३१ मील की दूरी पर यमुना के किनारे है । विशेष जानकारी के लिए देखिए 'ज्ञानोदय' वर्ष १ अंक ६-७ में प्रकाशित मेरा लेख कोशांबी ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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