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________________ (२४१) दूसरे दिन भी श्रेष्ठि ने चन्दना को न देखा और न उसके संबंध में कुछ जानकारी ही प्राप्त कर सका। ऐसा ही तीसरे दिन भी हुआ । श्रेष्ठि का धैर्य टूट गया। उसने उस दिन जो नौकरों को फटकार बतायी, तो हिम्मत करके एक वृद्धा ने सारी बात सच-सच कह दी। श्रेष्ठि ने कमरे का द्वार खोला। चंदना की दारुण दशा देख कर उसकी आँखों में आँसू आ गये । चंदना को भोजन देने के लिए, श्रेष्ठि स्वयं रसोईघर में गया; लेकिन उस समय एक सूप में उबाला कुल्माष पड़ा था। उसे चंदना को देकर, वह बेड़ी काटने के लिए लुहार बुलाने चला गया। ... चंदना उस उड़द के बाकुल को लेकर खड़ी-खड़ी विचारों में लीन थी। और, अपने अतीत के बारे में विचार कर रही थी। इसी समय उसके मन में विचार उठा कि मुझे तीन दिन का उपवास हो चुका है, यदि कोई अतिथि दिखलायी पड़े, तो उसे दान देकर पारणा करूं । इस विचार से उसने द्वार की ओर जो दृष्टि डाली, तो भगवान महावीर को आते देखा। हर्षातिरेक से उसने भगवान से प्रार्थना की-"इस प्रासुक अन्न को ग्रहण करके मेरी भावना पूर्ण करें।" लेकिन, अभी भा अपने अभिग्रह में कमी देख कर भगवान् लौट रहे थे कि, निराशा से चंदना की आँखों में आँसू आ गये। अब भगवान् का अभिगृह पूरा हो गया और चंदना के हाथों से भगवान् ने छः महीने में पाँच दिन शेष रहने पर पारणा किया। उस समय आकाश में देवदुंदुभी बज उठी। पंचदिव्य प्रगट हुए और चंदना का रूप पहले से भी अधिक चमक उठा। और, सर्वत्र उसके शील की ख्याति फैल गयी। उस समय राजा शतानीक भी वहाँ आये और पूछा कि यह सब किसके पुण्य से हो रहा है। इस पर उसकी पत्नी मृगावती चंदना को लक्ष्य करके बोली-“यह मेरी बहन' को लड़की है।' ( आवश्यक हारिभद्रीय टीका, पत्र २२५-१) आवश्यक चूरिण, भाग २, पत्र १६४ में आता है--"वेसालिए नगरीए चेडओ राया हेहयकुल संभूतो, तस्स देवीणं अण्णमण्णाणं सत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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