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(२३३) पाल मासिक संलेखना से आत्मा का ध्यान करता साठ समय (तीस दिन) अनशन कर मृत्यु को प्राप्त करके चमरचंचा राजधानी की उपपात सभा में इन्द्र रूप में उत्पन्न हुआ' । उस समय तुरत पैदा हुए असुरेन्द्र असुरराज ने पाँच प्रकार की पर्याप्तियों को प्राप्त करने के बाद, अवधि-ज्ञान से स्वाभाविक रीति से सौधर्मावतंसक नाम के विमान में शक नामक के सिंहासन पर बैठकर इन्द्र को दिव्य और भोग्य भोगों को भोगते हुए देखा। उसको इस प्रकार भोगों को भोगते देखकर चमरेन्द्र के मन में विचार हुआ-'यह मृत्यु को ४-देवताओं के जन्म के सम्बन्ध में वृहत्संग्रहणी सूत्र (पृष्ठ ४१८) में
आता है। अंतमहत्तए चिय पज्जत्तातरुणपुरिससंकासा। सव्वभूसाधरा अजरा निरुआ समा देवा ॥१६०॥ इस पर विशेषार्थ देते हुए गुजराती भाषानुवाद में लिखा है"देव-देवी देवशैया में उत्पन्न होते हैं ।...उत्पन्न होने के स्थान पर देवदूष्य (वस्त्र) से आच्छादित विवृत योनि एक देवशैय्या होती है ।... देवगति में उत्पन्न होनेवाला जीव एक क्षण में उपपात सभा में देवदूष्य वस्त्र के नीचे अंगुल के असंख्यातवें भाग में उत्पन्न होते हैं। उत्पन्न होने के साथ ही आहारादिक पाँच पर्याप्तियाँ एक ही मुहुर्त में प्राप्त करने के बाद वे पूर्ण पर्याप्तिवाले हो जाते हैं ।...और, ३२ वर्ष का व्यक्ति जिस प्रकार भोगों को भोगने के योग्य होता है, वैसे ही तरुण अवस्थावाले होते हैं।
-वृहत्संग्रहणी सूत्र (गुजराती भाषानुवाद सहित) पृष्ठ ४२० ५-पर्याप्तियाँ ६ हैं । प्रवचन सारोद्धार (सटीक, उत्तर भाग, पत्र ३८६-२)
में आता है :आहार १, सरीरि २, दिय ३, पज्जति आरणपाण ४, भास ५, मणे ६ ॥
... ॥१७॥ --आहार पर्याप्ति, २ शरीर पर्याप्ति, ३ इन्द्रिय पर्याप्ति, ४ प्राणापान पर्याप्ति, ५ भाषा पर्याप्ति, ६ मनःपर्याप्ति ।
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