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________________ (२२७) परिचय जानना चाहा। लेकिन, भगवान् ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया और न अपना परिचय ही बताया। इससे तोसलि-राजा और उनके सलाहकारों को विश्वास हो गया कि जरूर यह कोई छद्मवेशधारी साधु है । अतः उन्होंने आपको फाँसी की सजा सुनायी। अधिकारी आपको फांसी के फंदे पर ले गये और गले में फांसी का फंदा लगाया; लेकिन तख्ता चलाते ही फंदा टूट गया। इस तरह सात बार फांसी लगायी गयी और सातों बार फंदा दूटता गया। इस घटना से सब अधिकारी आश्चर्य में पड़ गये और राजा के समीप जाकर सब घटना कह सुनायी। राजा बड़ा प्रभावित हुआ। और, उसने आदरपूर्वक उनको मुक्त कर दिया। . तोसलि से भगवान् सिद्धार्थपुर गये और वहाँ भी चोर की आशंका से पकड़े गये; लेकिन कौशिक नाम के एक घोड़े के व्यापारी (आस-वरिणओ) ने आपका परिचय बताकर आपको मुक्त करा दिया। वहाँ से आप व्रजमाम गये।' १- आवश्यक चूणि, पूर्व भाग, पत्र ३१३ । ( पृष्ठ २२६ की पादटिप्पणि का शेषांश) गवरनर लिखा है । लेकिन, राय चौधरी ने लिखा है कि यह पद सम्भवतः इम्पीरियल हाई कमिश्नर-सरीखा था, जिसकी तुलना मिस्र के लार्ड क्रोमर से की जा सकती है। राय चौधरी राष्ट्रिय को राष्ट्रपाल शब्द के समकक्ष लेते हैं। बुद्धघोष ने एक प्रसंग में लिखा है-जब मगध के अजातशत्रु राजा की सवारी निकलती थी, तो राष्ट्रिय लोगों को महामात्र लोगों के साथ स्थान मिलता था। ये महामात्र बड़े अच्छे कपड़े पहने ब्राह्मण होते थे, जो. जयघोष करते चलते थे। राष्ट्रिय लोग भी बड़े सज-धज के कपड़े पहनते थे और हाथ में तलवार लेकर निकलते थे। अतः स्पष्ट हैं कि 'राष्ट्रिय' शब्द वस्तुतः 'प्रान्तपति' के पद का द्योतक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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