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(पृष्ठ २२५ की पादटिप्परिण का शेषांश )
(इ) राजश्यालस्तु राष्ट्रियः || १४ || प्रथम कांड, अमर- कोष
(ई) शब्दसिद्धि के नियमानुसार “राष्ट्रे अधिकृतः” इति राष्ट्रियः इस अर्थ में राष्ट्रादियः ६- ३ - ३ सिद्धहेम व्याकरण के नियमानुसार अधिकार अर्थ में इयस् प्रत्यय आकर भी राष्ट्रिय बनता है । अतः राष्ट्र में देश में जो अधिकारी या अध्यक्ष है, वह राष्ट्रिय कहलाता है । अमरकोष के एक टीकाकार क्षीरस्वामीने भी यही अर्थ किया है ।
क्षीरस्वामी ने अपनी टीका में कहा है कि नाटक छोड़कर राष्ट्रिय का अर्थ राष्ट्रधिकृत होता है । अर्थात् वह प्राधिकारी जो राष्ट्र, राज्य अथवा प्रान्त के मामलों को देखने के लिए नियुक्त किया गया हो ।
- 'पोलिटिकल हिस्ट्री आव ऐंशेंट इंडिया' राय चौधरी --कृत पृष्ठ २९० ( पाद-टिप्पणि)
(ऊ) 'राष्ट्रिय' शब्द का प्रयोग रुद्रदामन के शिलालेख में इस रूप में हुआ है :
८ – मौर्यस्य राज्ञः चन्द्र (गु) [प्त ] [स्य ] राष्ट्रियेण [वै] श्येन पुष्पगुप्तेन कारितं अशोकस्य मौर्यस्य (कृ) ते यवन राजेन तुष [1] स्फेनाधिष्ठाय । 'सिलेक्ट के इंस्क्रिप्शंस बियरिंग आन इंडियन हिस्ट्री ऐंडसिविलाइजेशन पृष्ठ १७१.
(ए) बरुआ ने अपनी पुस्तक 'अशोक ऐंड हिज इंस्क्रिप्शंस' में (पृष्ठ १४८, १४६, १५० ) लिखा है
तालाब का निर्माता वैश्य पुष्यगुप्त चन्द्रगुप्त मौर्य का राष्ट्रिय था । यहाँ राजनीतिक और शासन- सम्बन्धी पूरा रहस्य राष्ट्रिय शब्द में है । 'राष्ट्रिय' शब्द का अर्थ अमर- कोष में राजा का साला दिया है । अमरसिंह ने उसका वह अर्थ दिया है, जिस अर्थ में उसका प्रयोग संस्कृत - नाटकों में होता है । अतः इस सम्बन्ध में क्षीरस्वामी का यह मत ठीक है कि राष्ट्रिय राष्ट्राधिकृत को कहते हैं, जो राष्ट्र, राज्य अथवा प्रान्त देखभाल के लिए नियुक्त होता है । कीलहार्न ने पुष्यगुप्त को चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रान्तीय
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