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भगवान् ने उस बचे हुए अन्न से ही पारना किया। ____सानुलट्ठिय से भगवान् ने दृढ़भूमि की ओर विहार किया और पेढाल गाँव के पास स्थित पेढाल-उद्यान में पोलास नाम के' चैत्य में जाकर अट्टम तप (तीन दिन का उपवास) करके, एक भी जीव की विराधना न हो, इस . प्रकार एक शिला पर शरीर को कुछ नमाकर हाथ लम्बे करके किसी रुक्षपदार्थ पर दृष्टि स्थिर करके दृढ़ मनस्क होकर अग्निमेष दृष्टि से भगवान वहाँ एक रात्रि ध्यान में स्थिर रहे। यह महाप्रतिमा-तप कहलाता है।
भगवान् की ऐसी उत्कृष्ट ध्यानावस्था देखकर, इन्द्र ने अपनी सभा में कहा-"भगवान् महावीर के बराबर इस जगत में कोई ध्यानी और धीर नहीं है। मनुष्य तो क्या, देवता भी उनको अपने ध्यान से चलायमान नहीं कर सकते ।"२
इन्द्र के मुख से एक मनुष्य की ऐसी प्रशंसा संगमक-नामक देव से सहन नहीं हुई। उसने कहा-"ऐसा कोई मनुष्य नहीं हो सकता जो देवों की तुलना में आ सके । अभी जाकर मैं उनको ध्यान से चलायमान करता है।" ऐसी प्रतिज्ञा करके वह शीघ्र ही पोलास-चैत्य में जा पहुंचा, जहाँ भगवान महावीर ध्यानारूढ़ थे । भगवान् को ध्यान से विचलित करने के लिए सारी रात उसने बीस अति भयंकर उपसर्ग किये :
(१) पहले उसने प्रलयकाल की तरह धूल की भीषण वृष्टि की। भगवान् के नाक, आँख, कान उस धूल से भर गये; लेकिन अपने ध्यान से वे जरा भी विचलित नहीं हुए।
(२) धूल की वर्षा करने का उपद्रव शांत होते ही, उसने वज्र-सरीखी तीक्ष्ण मुंहवाली चीटियाँ उत्पन्न की। चींटियों ने महावीर के सारे शरीर को खोखला बना दिया।
१-आवश्यक चूणि, प्रथम भाग, पत्र ३०१ । १-आवश्यक चूणि प्रथम खंड, पत्र ३०२ ।
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