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________________ (२२२) (३) फिर उसने मच्छर के झंड-के-झंड भगवान् पर छोड़े जो उनके शरीर को छेद कर खून पीने लगे। उस समय भगवान् के शरीर में से बहते हुए दूध-सरीखे खून से भगवान् का शरीर झरने वाले पहाड़सरीखा मालूम होता था। (४) यह उपसर्ग शान्त ही नहीं हुआ था कि, प्रचंड मुखवाली धृतेलिका (दीमक) आकर भगवान् के शरीर से चिपट गयीं और उनको काटने लगीं । उनको देखने से ऐसा लगता था, मानो भगवान् के रोंगटे खड़े हो गये हों। (५) उसके बाद उस देव ने बिच्छुओं को उत्पन्न किया, जो अपने तीखे दंशों से भगवान् के शरीर को दंशने लगे। (६) फिर उसने न्यौले उत्पन्न किये, जो भयंकर शब्द करते हुए भगवान् की ओर दौड़े और उनके शरीर के मांस-खंड को छिन्न-भिन्न करने लगे। (७) उसके पश्चात् उसने भीमकाय सर्प उत्पन्न किये। वे भगवान् को काटने लगे। पर, जब उनका सारा विष निकल गया, तो ढीले होकर गिर पड़े। (८) फिर, चूहे उत्पन्न किये। जो भगवान् के शरीर को काटते और उस पर पेशाब करके 'कटे पर नमक' की कहावत चरितार्थ करते । (8) उसने लम्बी सूडवाला हाथी (गजेन्द्र) उत्पन्न किया, जो भगवान् को उछाल कर लोक लेता था । दाँतों से भगवान् पर प्रहार करता था, जिससे वज्र-सरीखी भगवान् की छाती में से अग्नि की चिनगारियाँ निकलती थीं। लेकिन, हाथी भी अपने प्रयत्न में सफल नहीं हुआ। (१०) उसके बाद हथिनी ने भी भगवान् पर वैसा ही उपद्रव किया । उनके शरीर को बींध डाला । अपने शरीर का जल-विष की तरह भगवान् पर छिड़का। लेकिन, वह भी भगवान् को विचलित करने में सफल नहीं हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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