SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१३) भगवान् महावीर यह पहले से ही जानते थे कि, अनार्य-देश में विचरने का अर्थ कष्टों को मोल लेना है । वहाँ भगवान को ठहरने के लिए भी स्थान नहीं मिलता था । अतः वे किसी वृक्ष के नीचे अथवा बँडहर में ठहर जाते थे । अनार्य-देश के लोग भगवान् का मखौल उड़ाते । भगवान् को देखते ही उनको चारों ओर से घेर लेते और घूर-घूर कर उन्हें देखने लगते थे। वे वे उनपर पत्थर फेंकते, धूल उड़ाते, गालियाँ बकते और उन्हें दाँत काटते और उन पर शिकारी कुत्ते छोड़ते, जो भगवान् को काट लेते। इन सारे कष्टों को सहकर भगवान् अडिग बने रहे। उन अनार्यों के प्रति उनमें लेश [ पृष्ठ २१२ की पादटिप्पणी का शेषांश ] के प्रमाण में उन्होंने बूलर-रचित 'इण्डियन सेक्ट आव जैनिज्म' का उल्लेख किया है। उक्त पुस्तक में बूलर (पृष्ठ २६) ने लिखा है--१२ वषों से अधिक समय तक ( केवल वर्षा में विश्राम करते हुए ) वे लाढ़ प्रदेश में-वज्जभूमि और सुम्हभूमि में विहार करते रहे।" पर, यह दे महोदय और बूलर दोनों का भ्रम है। महावीर स्वामी ने अपना पूरा छद्मकाल अनार्य प्रदेश में नहीं बिताया था। पाठक यहाँ दिये पूरे विवरण से इस उक्ति की भूल समझ जायेंगे। (स) अपनी पुस्तक 'प्री-एरियन ऐंड प्री ड्रेविडियन इन इण्डिया' (पृष्ठ १२५) में श्री सेलविन लेवी ने आचारांग का उद्धरण देते हुए लिखा है-“लोग खुरुखू करके कुत्तों से महावीर स्वामी को कटाते ।" और, आगे उन्होंने "खुरुखू” और “तुत्तू" शब्द को समान माना है । पर, अपने इस निर्णय में लेवी ने भूल की है। मूल आचाराग भाग, १, में शब्द 'छुछ्छू ( पत्र २८१।२ ) है, न कि 'खुख्खू' । और, 'तुत्तू' तथा 'छुछछू' में मूलभूत अंतर यह है कि 'तुत्तू' कुत्ते के बुलाने के लिए प्रयुक्त होता है और 'छुछछू' दूसरों पर आक्रमण कराने के लिए। (द) हमने इस संबंध में 'वीर-विहार-मीमांसा' (हिन्दी) में विशेष रूप से विचार किया है। जिज्ञासु उसे देख सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy