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________________ (२०६) शीलता और धैर्य के आगे कटपूतना को अपनी हार माननी पड़ी। पराजित कटपूतना भगवान की पूजा करने लगी। . शालीशीर्ष से भगवान ने भदिया' नगरी की ओर विहार किया और छठाँ चातुर्मास आपने भद्दिया में ही व्यतीत किया। गोशाला जब से भगवान से अलग हुआ, तब से उसे बड़े कष्ट सहने पड़े और भगवान् को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते ६ महीने के बाद शालीशीर्ष में वह पुनः भगवान से आ मिला और उन्हीं के साथ रहने लगा। __भद्दिया के इस चातुर्मास में भगवान् ने चातुर्मासिक तप करके विविध प्रकार के योगासन और योगक्रियाओं की साधना की। चातुर्मास समाप्त होते ही आपने भद्दिया के बाहर चातुर्मास तप का पारणा किया और वहाँ से मगध भूमि की ओर विहार किया। १-अंग-देश का एक नगर था। भागलपूर से ८ मील दक्षिण में स्थित भदरिया गाँव प्राचीन भदिया है। सातवाँ चतुर्मास सरदी और गरमी के आठ मास तक भगवान् मगध के विविध भागों में गोशाला के साथ बिचरे । और, जब वर्षा ऋतु समीप आयी, तो चतुर्मास के लिए आलंभिया पधारे। और, सातवाँ चतुर्मास आलंभिया नगरी में किया। आलंभिया के चतुर्मास में भी, भगवान् ने चतुर्मासिक तप किया । और, चतुर्मास समाप्त होते ही, भगवान् ने नगर से बाहर जाकर तप का पारना किया । और, वहाँ से कुंडाक-सन्निवेश की ओर गये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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