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(२०७) केवल-ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी भगवान महावीर ने एक वर्षावास आलंभिया में किया था (कल्पसूत्र, सूत्र १२१) यहाँ शंखवन नामक उद्यान में एक चैत्य था । इस नगर में ऋषि भद्रपुत्र आदि श्रावक रहते थे। (भगवती सूत्र श० ११ उ० १२, पत्र १००८) उवासग दसाओ में वर्णित दस मुख्य श्रावकों में चुल्लशतक नामक मुख्य श्रावक भी यहीं का था (अध्ययन ५) । यहाँ के राजा का नाम जितशत्रु मिलता है तथा यहाँ के पोग्गल नामक एक परिव्राजक को महावीर स्वामी ने अपना श्रावक बनाया था।
अ-हार्नेल ने उवासगदसाओ के परिशिष्ट खण्ड में (पृष्ठ ५१-५३) को आलंभिया की अवस्थिति पर विचार किया है और कई मत दिये हैं :
(१) कर्नल यूल ने इसकी पहचान रीवा से की है।
(२) फाह्यान की यात्रा के वील-कृत अनुवाद में (बुद्धिस्ट रेकार्ड आव द' वेस्टर्न वर्ल्ड, पृष्ठ Xliii) आता है कि कन्नौज से अयोध्या जाते समय गंगा के पूर्वी तट पर फाह्यान को एक जंगल मिला था। फाह्यान ने लिखा है कि बुद्ध ने यहाँ उपदेश दिया था और वहाँ स्तूप बना है। हार्नेल ने लिखा है कि पालि शब्द अळवी और संस्कृत अटवी का अर्थ भी जंगल होता है। ___ इसकी स्थिति के सम्बन्ध में कनिंघम का मत है कि नवदेवकुल ही अळवी हो सकती है, जिसका उल्लेख छैन च्यांग ने किया है। कन्नौज से १६ मील दक्षिण-पूर्व में स्थित नेवल में अब भी इसके अवशेष हैं (आा -- लाजिकल सर्वे रिपोर्ट, खंड १, पृष्ठ २६३) फाह्यान और हनच्यांग के दिये वर्णन से इस दूरी का मेल बैठ जाता है।
(३) मेरा मत यह है कि, जैन-ग्रन्थों में आया आलंभिया बौद्ध-ग्रन्थों में । आया आळवी एक ही स्थान के नाम है।
आ-राहुल सांकृत्यायन ने आळबी की पहचान अर्वल (जिला कानपुर), से की है। (बुद्धचर्चा, पृष्ठ २४२)
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