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________________ (१८८) आगे विहार करते हुए, रास्ते में गंगा नदी आयी । गंगा का पाट विशाल था। वह समुद्र की तरह हिलोरें लेती हुई बह रही थी। नदी पार करने के लिए भगवान् सिद्धदत्त की नौका में बैठे। डोंगी में अन्य यात्रियों में खेमिल नामक एक नैमित्तक भी था। नौका आगे बढ़ते ही, दाहिनी ओर एक उल्लू बोला। उसको सुनते ही खेमिल ने कहा-"यह बड़ा अपशकुन हुआ। जरूर कोई बवंडर होगा; लेकिन इस महापुरुष के प्रभाव से इस महान् आपत्ति का निवारण होगा।" नौका गंगा के मध्य में पहुंची। ठोक उसी समय सुदंष्ट नामक देव ने भगवान् को नाव में बैठे देखा। उसे यह बात याद आ गयी कि, उन्होंने त्रिपृष्ठ के भव में सिंह के रूप में उसे मार डाला था। अत: उसका बदला लेने के लिए उसने नदी में भयंकर तूफ़ान खड़ा किया । जोर से हवा के झोंके आने लगे । नौका भंवर में चक्कर काटने लगी। यात्री रक्षा के लिए त्राहि-त्राहि करने लगे। मृत्यु समीप आयीं देख, सभी अपने-अपने इष्ट देव का स्मरण करने लगे। फिर भी, भगवान् महावीर उस नौका के कोने में ध्यान लगाकर मेरु की तरह निश्चल बैठे रहे। तूफ़ान देखकर कम्बल-शम्बल नामक नागकुमार (एक भुवनपति देव) देवता का आसन विचलित हुआ और उन्होंने तूफ़ान शांत कर दिया। ___ कुछ समय बाद तूफ़ान शांत हो गया। नौका किनारे पर आ गयी । नया जन्म समझकर यात्री जल्दी-जल्दी नाव से उतरने लगे। भगवान् महावीर भी नाव से उतर कर गंगा के किनारे चलते हुए थूणाक सन्निवेश के बाहर ध्यान में आरूढ़ हो गये। कुछ समय के बाद पुष्य नाम का सामुद्रिक वेत्ता वहाँ से निकला और गंगा के तट पर पड़े भगवान् के पदचिह्नों को देखकर आश्चर्य में डूब गया। और, यह सोचने लगा-"यह पदचिह्न तो किसी चक्रवर्ती का है। यह अकेला १-आवश्यक चूरिण, प्रथम भाग, पत्र २८२ । थूणाक सन्निवेश मल्लदेश में था । (वीर-विहार-मीमांसा, हिन्दी, पृष्ठ २४) यह पटना से उत्तर-पश्चिम और गण्डकी के दक्षिणी तट पर था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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