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________________ (१८४) तपस्वी ने उत्तर दिया- "ये सब मण्डूकियों जो मरी हैं, उन सब को क्या मैंने ही मारा है ?" शिष्य वय में छोटा होने बावजूद बड़ा सहनशील था । अतः चुप हो गया । 'गुरुजी संध्या समय प्रतिक्रमण के वक्त आलोचना कर लेंगे' - ऐसा समाधान उसने अपने मन में कर लिया । जब प्रतिक्रमण के समय गुरु ने आलोचना नहीं की, तो शिष्य ने पुनः स्मरण कराया । तपश्चर्या से साधु का शरीर कृश हो गया था; लेकिन उसके कषाय मंद नहीं हुए थे । अतः तपस्वी डंडा लेकर मारने दौड़ा । लेकिन, बीच में खम्भे से टकराने से तपस्वी की मृत्यु हो गयी । मर कर वह ज्योतिष्क देवलोक में देवरूप से उत्पन्न हुआ । वहाँ से च्यव कर कनकखल - नामके आश्रमपद में पाँच सौ तपस्वियों के कुलपति की पत्नी की कुक्षि से कौशिक नाम से उत्पन्न हुआ। कौशिक गोत्र का होने से और अत्यन्त क्रोधी होने के काररण, उसका नाम चण्डकौशिक रखा गया । अपने पिता के निधन के बाद, वह उस आश्रम का मालिक हुआ। वह सदा आश्रम में घूमता और एक पत्ता भी नही तोड़ने देता । यदि कोई इस प्रकार प्रयास करता, तो वह पत्थर या परशु लेकर उसे मारने दौड़ता । उसकी इस निर्दयता को देख कर सब तपस्वी वहाँ से चले गये । एक दिन चण्डकौशिक कहीं गया था । उस समय श्वेताम्बी के राजकुमार बाग में जाकर फल-फूल तोड़ने लगे । जब चण्डकौशिक लौटा तो गोपों ने उसे बताया कि उद्यान में कुछ राजकुमार गये हैं । चण्डकौशिक तीक्ष्ण धार वाली ( कुहाड़) कुल्हाड़ी लेकर राजकुमारों के पीछे दौड़ा। राजकुमार तो भागे; पर तपस्वी का पाँव फिसल गया । वह गड्ढे में गिर पड़ा । गिरने में कुल्हाड़ी का फाल सीधा हो गया और चंडकौशिक उसी पर गिरा । उसका सर दो टुकड़ा हो गया । इस प्रकार उसकी मृत्यु हो गयी । वही चण्डकौशिक मर कर दृष्टिविष नाम का सर्प हुआ ' । सारे दिन आश्रमपद में घूमकर वह सर्प जब अपने स्थान को वापस लौटा तो उसकी नजर ध्यानावस्थित भगवान् पर पड़ी । चकित होकर वह सोचने लगा - " इस निर्जन में यह मनुष्य कहाँ से आया ? लगता है कि, मृत्यु इसे यहाँ घसीट कर ले आयी है ।" ऐसा विचार कर के, उसने अपनी १. -आ० चु०, प्रथम भाग, पत्र २७८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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