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उत्पल को जब यह मालूम हुआ कि भगवान् महावीर शूलपाणि यक्ष के मंदिर में उतरे हैं तो वह सहसा चिंतित हो उठा और सारी रात अनिष्ट आशंकाओं में व्यतीत करके सुबह होते ही इंद्रशर्मा पुजारी के साथ भगवान् महावीर को देखने के लिए गया । वहाँ जाकर उन सब ने देखा कि, भगवान् महावीर के चरणों में पुष्प गंधादि सुगन्धित पदार्थ चढ़े हुए थे । इसको देखकर गाँव के लोगों और उत्पल नैमित्तक के आनन्द की कोई सीमा न रही । हर्षावेश में गगनभेदी नारे लगाते हुए, वे भगवान् के चरणों में गिर पड़े और बोल उठे - "हे देवार्य ! आपने देवबल से इस क्रूर यक्ष को शांत कर दिया । यह बहुत ही अच्छा हुआ ।"
भगवान् के स्वप्नों का फलादेश करते हुए वह उत्पल नामक नैमित्तिक ' बोला - "भगवान्, आपने जो पिछली रात को स्वप्न देखे हैं, उनका इस प्रकार है :
( १ ) आप मोहनीय कर्म का अंत करेंगे ।
( २ ) शुक्ल ध्यान आप का साथ नहीं छोड़ेगा ।
( ३ ) आप विविध ज्ञानमय द्वादशांग श्रुत की प्ररूपणा करेंगे । ( ४ ) ?
१ - भगवती सूत्र सटीक, शतक १६, उद्देसा ६, सूत्र ५८०, तृतीय खंड पत्र १३०५, १३०६, कल्पसूत्र सबोधिका टीका पत्र २९४ ।
आवश्यकचूरिंग, पत्र २७४,
त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग ३, श्लोक १४७ - पत्र २४.१.
[ पृष्ठ १७१ की पादटिप्पणि का शेषांश ]
महावेत्ता था - लोगों के मुख से सुनकर इस प्रकार ( भगवान् की ) चिंता करने लगा ।
- आवश्यकचूणि, पत्र २७३ ।
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