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(१७१) उसी रात्रि को पिछले प्रहर जब एक मुहूर्त रात बाकी रही, तो भगवान् को निद्रा आ गयी । और, उस समय उन्होंने १० स्वप्न देखे :
१-अपने हाध से बढ़ते हुए ताड़ पिशाच को मारना २-श्वेत पक्षी को अपनी सेवा करते हुए ३-चित्र-कोकिल पक्षी को अपनी सेवा करते हुए ४-सुगन्धित पुष्पों की दो मालाएँ ५-सेवा में रत गौ-समुदाय ६-विकसित कमलवाला पद्म-सरोवर ७. समुद्र को तैर कर पार करना ८-उगते हुए सूर्य के किरणों को फैलते हुए
-अपनी आँतों से मनुषोत्तर पर्वत को लपेटते हुए १०- मेरु पर्वत पर चढ़ते हुए
रात्रि को शूलपाणि का अट्टहास सुन कर गाँव के लोगों ने भगवान् महावीर के मृत्यु का अनुमान कर लिया था और पिछली रात को जब उसको गीत-गान करते हुए सुना तब लोगों ने समझा कि, यह यक्ष महावीर की मृत्यु की खुशी में अब आनंद मना रहा है।
अस्थिक गाँव में उत्पल नामका एक निमित्तवेत्ता विद्वान् रहता था वह किसी समय भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा में जैन-साधु' था। और पीछे से गृहस्थ होकर निमित्त-ज्योतिष से अपनी आजीविका चलाता था।
१-तत्थ य उप्पलो नाम पच्छाकडो परिवाओ पासावच्चिज्जो नेमित्ति ओ भोमउप्पातसिमिणंतलिक्ख अंग सरलक्खण वंजण अटुंग महानिमित्त जाणओ जणस्स सोऊण चितेति ।
-वहाँ पार्श्वनाथ की परम्परा में साधुता स्वीकार करके बाद में उसका त्याग करके गृहस्थ बना हुआ उत्पल नामका निमित्तक था जो भोम, उत्पात्, स्वप्न, अंतरिक्ष, अंग, स्वर, लक्षण और व्यंजन इन अष्टांग निमित्त का
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