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(१७३) (५) श्रमण-श्रमपी-श्रावक-श्राविकात्मक चतुर्विध संघ आपकी सेवा .. करेगा. (६) चार प्रकार के देव आपकी सेवा में उपस्थित रहेंगे। (७) संसार-समुद्र से आपका निस्तार होगा। (८) आप केवलज्ञान को प्राप्त करेंगे। (6) स्वर्ग, मर्त्य और पाताल तक आपका यश फैलेगा। (१०) सिंहासन पर बैठ कर आप देव और मनुष्यों को सभा में धर्म
की प्रस्थापना करेंगे। "इस प्रकार नव स्वप्नों का फल मेरी समझ में आ गया; लेकिन चौथे स्वप्न में आपने जो सुगन्धित पुष्पों की दो मालाएँ देखीं, उसका फल मेरी समझ में नहीं आया।"
चौथे स्वप्न का फल बतलाते हुए, भगवान् ने कहा- "उत्पल, मेरे चौथे स्वप्न का फल यह होगा कि सर्व विरति (साधु धर्म) और देश विरति (श्रावक धर्म) रूप दो प्रकार के धर्म का मैं उपदेश करूँगा।" .
अपना प्रथम चातुर्मास भगवान् ने १५-१५ उपवास के आठ अर्द्धमास तपश्चर्या द्वारा व्यतीत किया ।'
'१ आवश्यक चूर्णी, पत्र २७४, २७५
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