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________________ (१६२) दे दिया। वह आधा वस्त्र लेकर वह घर पर गया और फटी हुई किनारी को ठीक कराने के लिए रफूगर' के पास गया । रफूगर ने पूछा कि, ऐसा अमूल्य वस्त्र तुझे कहाँ से मिला ? ब्राह्मण ने उसे सच्ची बात कह सुनायी । तब रफूगर ने कहा- "दूसरा आधा वस्त्र भी ले आओ। तुम उस मुनि के पीछे-पीछे घूमना और जब वह गिर पड़े तब ले • लेना । निस्पृह होने से वे उसको नहीं उठायेंगे। तब तुम उसे उठा लेना । मैं उसको रफू कर दूंगा। तब उसका मूल्य १ लाख दीनार होगा। फिर हम दोनों आधी-आधी मुद्रा बाँट लेंगे।" अतः ब्राह्मण भगवान् के पीछे-पीछे भटकने लगा। भ०महावीर ज्ञातखंड-उद्यान से विहार करके उसी दिन शाम को--जब एक मुहूर्त दिन शेष रहा--कर्मारग्राम आ पहुँचे। कर्मार ग्राम आने के लिए दो मार्ग थे । एक जलमार्ग दूसरा स्थल मार्ग । भगवान् स्थल मार्ग से आये और रात्रि वहीं व्यतीत करने के विचार से ध्यान में स्थिर हो गये। १–जले, फटे कपड़े के छोटे सुराख में तागे भर कर बराबर करनेवाला वृहत् हिन्दी कोश, पृष्ठ १०८७ । २-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पत्र २८६ । १ वर्ष १ मास के बाद जब भगवान् के शरीर से वह वस्त्र गिरा तब वह ब्राह्मण उसे उठा कर ले आया। त्रिशष्टि शलाका पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग ३, श्लोक २-१४, २१६-२२० आवश्यक मलयगिरी की टीका पत्र २६६।२ आवश्यक चूर्णी पत्र २६८।२ ३-यह वन तथा क्षत्रियकुंड के समीप में ही स्थित था; क्योंकि भगवान ने दीक्षा लेकर उसी दिन शाम को कर्मारग्राम जाकर रात्रि व्यतीत की थी। जो लोग लिछआर के निकट-स्थित 'कुमारगाँव' की इस कारग्राम से तुलना करते हैं, वे लोग बिना सोचे-समझे बातें करते हैं और अपनी अज्ञानता प्रकट करते हैं। 'कर्मार' का शाब्दिक अर्थ होता है, लुहार । अतः कर्मारग्राम लुहारों के गाँव को कहते हैं । लछवार के पास जो कुमारग्राम है, वह इस से सर्वथा भिन्न है और वह भी वहाँ एक नहीं बल्कि दो 'कुमारगाम' · पास ही पास हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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